google.com, pub-3595068494202383, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आखिरी चाहत - हिंदी कहानी | AKHIRI CHAHAT - HINDI KAHANI , ROCHAK KAHANI , manoranjak kahaniya

आखिरी चाहत - हिंदी कहानी | AKHIRI CHAHAT - HINDI KAHANI , ROCHAK KAHANI , manoranjak kahaniya

 

आखिरी चाहत - हिंदी कहानी

HINDI KAHANI  - हिंदी कहानी 

सबेरे का वक्त है मोहन दास जी सुबह की सैर से घर बापस लौट रहे थे | आज उनकी खांसी कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ रही थी | खांस खांस के आज रात से ही उनका बुरा हाल था ऐसा लगता था जैसे खासते वक्त उनका कलेजा मुँह को आया जा रहा है | वैसे भी उम्र का तकाजा था शरीर में कमजोरी तो थी ही | हड्डियों के ऊपर का सारा मांस जा चुका था | कपडे उतार कर देखा जाये तो ऐसा प्रतीत होता था की किसी कंकाल का फोटो टांग रखा है | आज तो खासी ज्यादा होने की बजह से मोहन जी की सांसे भी कुछ ज्यादा तेज चल रही थी | बापस लौटते समय उन्हें घर पहुंचना भी मुश्किल हो रहा था फिर भी वो हिम्मत किये आगे बढ़ते रहे | जब उनकी हिम्मत जवाव दे गई तो वो खेत जिस पगडंडी पर आ रहे थे वही बैठ गए | और हाँफते रहे | कुछ देर में और भी गांव के लोग सुबह सुबह आ जा रहे थे तो किसी ने देखा कि ये मोहन जी यहाँ क्यों लेटे हैं | कुछ युवा लोग आये और उनसे हाल चाल पूछा ? तो उन्होंने उन्हें घर पहुंचाने को कहा और अपने तबियत ख़राब बताई | तो कुछ लोगो ने मिल कर उन्हें घर तक पहुंचाया |

जब घर के दरवाजे पर लगभग बेहोशी की अवस्था में मोहन जी को उनकी पत्नी ने देखा तब वो घर में पौधा रोपड़ कर रही थी , देखते ही वो उनसे पहले ही बेहोश होने जैसी अवस्था में पहुंच गई |
अब लोग मोहन जी को छोड़ मुन्नी देवी जी को सँभालने में लग गए | किसी ने ठंडा जल उनके चेहरे पर छिड़का तब जाकर उनको होश आया | बाकी लोगो ने उन्हें बताया कि मोहन जी को ज्यादा कुछ नहीं कमजोरी और खांसी की बजह से दिक्कत हो गई है | थोड़ी देर बाद सब सामान्य हो जाता है |

मुन्नी देवी जी ने मोहन जी से पूछा - आप को रात भर खांसी रही थी सो भी नहीं पाए थे खांसी की बजह से , फिर भी आप सुबह शर्दी में बाहर गए | अब आदत बदल लो नहीं तो परेशानी बढ़ती ही जाएगी |
मोहन जी ने जवाव दिया - अरे मै तो अपने बड़े वाले खेत पर जो नीम के पेड़ है उनकी बात करने गया था | सोच रहा हूँ बेच देता तो कुछ पैसे ही हाथ लग जायेगे |
मुन्नी जी ने मुँह बिगड़ते हुए कहा - कित्ता पैसा हाथ लगाओगे ? सारी जिंदगी तो तुमने पेड़ कटवा कटवा कर कर पैसे ही तो कमाए है | अब बस भी करो बच्चे कमा तो रहे है | और अब तुम किसके लिए कामना चाहते हो | अब तुमने अपना चेहरा शीशे में कब से नहीं देखा ? तुम्हारे चेहरे पर सिर्फ नाक और दांत ही दीखते है | 
मोहन जी - अरे भाग्यवान अगर पैसा नहीं है तो कोई नहीं पूछता और वैसे भी तुम्हारा कोनसा बेटा तुम्हे पूछता है ?
मुन्नी - हाँ ये भी बात सही है लेकिन तुम अब ये काम बंद कर दो पेड़ो और पैधो की कटाई वाला | चंद रुपयों के चक्कर में पता है तुम्हे कितने लोगो के मुँह से आप उनके जीवन की सांसे छीन लेटे हो ?
मोहन जी - अब शांत बैठे थे उनके पास कोई जवाव नहीं था | और उसकी खांसी में कोई सुधार नहीं था और वो लगातार खांसे जा रहा था | नौबत अब डॉक्टर के पास जाने की आ चुकी थी |

मोहन जी के दो बेटे है जो कि दोनों ही शहर में नौकरी करते है और अपने बच्चो के साथ शहर में ही रहते है | उन्हें इस बात से अबगत कराया गया तो बड़े बेटे ने उन्हें तुरंत पास के शहर के डॉक्टर से दवा लेने को कहा और फिर उसके पास शहर आने को कहा | तो मोहन जी ने तुरंत ऐसा ही किया |
दोनों लोग तैयार हुए और पास के शहर के डॉक्टर के पास गए |
डॉक्टर ने चेक किया और कुछ चेकउप बाहर से करवाए तो पता चला की मोहन जी को दमा और अस्थमा की बीमारी हो गई है | ये सुन कर तो मोहन जी का तो दिल ही बैठ गया | वो तो अगले महीने तीर्थ यात्रा पर जाना चाहता है | अब ये सब कैसे संभव हो पायेगा | मुन्नी देवी से कहने लगा लगता है मेरी अंतिम इच्छा तीर्थ यात्रा पर जाना पूरी नहीं हो पायेगी | डॉक्टर द्वारा दी गई दो दिन की दवा लेके वो दोनों घर वापस आजाते है | पुनः दो दिन बाद उन्हें डॉक्टर के पास जाना था | तबियत में कोई बदलाव नहीं थे | पुनः दो दिन बाद दोनों डॉक्टर की क्लिनिक पर पहुंचे | तो डॉक्टर को मोहन जी ने अपनी अंतिम इच्छा के बारे में बताया |
तब डॉक्टर ने थोड़ा गहराई में जाते हुए उन्हें समझाया के जल्दी जल्दी ठीक होने के लिए आपको शुद्ध हवा पानी की आवशयक्ता है | और इस उम्र में इतना जल्दी ये सब सम्भव नहीं है | बातो बातो में डॉक्टर ने उनसे पूछ लिया बाबा जी आप क्या करते है ?
मोहन जी - जी लकड़ी का छोटा मोटा व्यापारी हूँ | 
डॉक्टर - मतलब ?
मोहन जी - मतलब पेड़ो की कटाई का व्यापार है |
डॉक्टर मुस्कराया और बोला बाबा जी आप तो खुद ही बीमारी खरीदते और बेचते हो तो कैसे आप उससे कैसे बच सकते हो ?
मोहन जी का मुँह लटक चुका था | डॉक्टर ने बाबा जी को बहुत देर तक समझाया |
फिर मोहन जी अपने घर के चले जाते है |
अगली सुबह जल्दी मोहन जी के हाथो में कुदाल को उठाये घर से बाहर जाते देख मुन्नी देवी जी ने उन्हें टोका और कहा क्या आपको जल्दी ठीक नहीं होना क्या ? और अपनी तीर्थ यात्रा पर नहीं जाना क्या ?

HINDI KAHANI  - हिंदी कहानी 

मोहन जी - मुस्कराते हुए हाँ वही तो जारहा हूँ |
मुन्नी जी - अचम्भित होते हुए बस मुस्करायी , और पूछा वो कैसे और इतनी सुबह ?
मोहन जी ने बड़ी गंभीरता से उत्तर दिया , मेने अपनी अंतिम इच्छा बदल दी है |
मुन्नी जी - अरे अब क्या ?
मोहन जी - अब मेरी अंतिम इच्छा है जब तक साँस रहेगी तब तक मै रोज पेड़ और पौधे लगाऊगा | हर घर के आगे , हर खेत खलियान में पेड़ पौधे की रुपाई करना ही अब मेरी अंतिम इच्छा है | मेने जिंदगी भर लोगो से उनकी हवा ओर पानी ओर बाताबरण के साधनो का व्यापार कर उन्हें उनके हक़ से बंचित किया हैं l लेकिन अब जिंदगी के अंतिम दिनों मे मैं अपने द्वारा किये गये पापो को थोड़ा कम करना चाहता हूँ l 
मुन्नी जी की आँखों में खुसी के आंसू थे , बोली देर से ही सही , लेकिन दुरुस्त समझे आप | जीवन भर मेरी बात आप नहीं माने परन्तु अब ही सही |
और दोनों हस्ते मुस्कराते एक दूसरे के गले लग गए और एक साथ बोले - सुबह का भूला शाम को घर बापस आजाये तो उसे भूला नहीं कहते |
अब दोनों ने मिल कर आज ही १०० पौधे लगाए और अपने साथ साथ अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने का वादा किया और यही शिक्षा अपने पड़ोसियों को देते रहे ताकि उनका बाताबरण ओर पर्यावरण दोनों ही सुरक्षित बना रहे, और आने बाली पीढ़ी को नहीं उनके हिस्से का जल जीवन ओर जंगल देखने को मिल सके |


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