बेटी या बहू - beti ya bahoo | Hindi Kahaniyan | Kahani In Hindi | Story In Hindi
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क्या बात है बहू आज बड़ी उदास लग रही हो ? सुबह से देख रही हूँ , काम भी नहीं हुआ है , किचन ऐसे ही पसरा हुआ है | गुड़िया भी स्कूल से आ गयी है , उसकी भी ड्रेस नहीं उतारी तुमने , दिनेश भी आने बाला होगा , उसके लिए भी अभी तक कुछ खाने पीने का तैयार नहीं किया है , मेरे भी पैरो पर सूजन आ रही है मेरी भी तक मालिश के लिए तेल तैयार नहीं किया है ?
निधि आज सुबह से ही चिंतित हो रही थी !! आज उसका मन बहुत अजीब हो रहा था , उसे एक ही चिंता खाये जा रही थी , आखिर उसका नियुक्ति पत्र अब तक उसके घर तक क्यों नहीं पंहुचा !! जबकि उसकी ननद ऊषा का नियुक्ति पत्र दो दिन पहले ही आ चुका था ||
सासु माँ के ताने सुन के उसे याद आया की उसे एक नौकरी घर में भी करनी होती है , जिसके बदले में पगार नहीं बल्कि ताने सुनने को मिलते है !!
जब उसने देखा की दिनेश भी कमरे में आ चुका है तो उसके लिए खाना परोस के ले गयी , उसने खाने की थाली दिनेश के सामने रख दी और साइड में बैठ गयी , धीरे से कहा " खाना खा लीजिये "
निधि के पति दिनेश ने देखा और महसूस किया उसकी पत्नी निधि पिछले दो दिन से बहुत परेशान दिखाई दे रही है !! तो उसने पूछ दिया " क्या बात है निधि तुम कुछ परेशान दिखाई दे रही हो ? कुछ हुआ है क्या ? "
निधि दिनेश के पास आई और बोली " घर का दिन भर काम करने के बाद रात रात भर जाग के मैंने अपनी परीक्षा की तैयारी करी थी , और मेरा पेपर भी अच्छा गया था , जबकि ऊषा का मेरे से बेहतर नहीं हुआ था , फिर भी ऊषा का नौकरी के लिए न्युक्ति पत्र कब का आ चुका है और मेरा नहीं !! अगर ये शिक्षक की नौकरी हमें मिल जाती तो हमारा भविष्य सुन्दर हो जाता , वैसे भी आपका काम धंधा कुछ ख़ास नहीं , हमेशा मंदा ही रहता है !! ऊपर से अब गुड़िया भी बड़ी हो रही है , उसकी परिबरीश के लिए भी तो पैसे की जरूरत होगी , उसकी बेहतर शिक्षा के लिए कितना खर्चा चाहिए होगा !!
अपनी पत्नी निधि की बात सुन के दिनेश भी चिंतित हो गया , हाँ तुम सही कह रही हो , ऊषा का तो पेपर तुम्हारे मुकाबले थोड़ा ख़राब ही था हमने खुद बैठ के चेक किया था ||
हमें कुछ तो गलत लग रहा है , कही ऐसा तो नहीं हमारे साथ कपट किया जा रहा हो ?
कैसा कपट निधि ? , दिनेश ने खाने की थाली अपने आगे से हटाते हुए पूछा !! निधि एक पढ़ी लिखी और समझदार लड़की थी उसने बात अपने मन में ही दबा ली और खुद ही तहकीकात करने का फैसला किया !!
ऊषा बड़ी खुश नजर आ रही थी , क्युकी अगले महीने उसकी न्युक्ति हो रही थी , वो अब एक सरकारी अध्यापिका बनने जा रही थी | उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था , उसके पेअर जमीन पर नहीं आस्मां पर थे || निधि को उषा की कामयाबी पर ईर्ष्या तो नहीं थी पर अपनी किस्मत पर मलाल जरूर था , वो अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रही थी ||
करीब 6 महीने बाद , दिवाली के त्यौहार की सफाई चल रही थी , निधि खुद सारे घर की साफ़ सफाई और रंगाई पुताई का जिम्मा ले रही थी !! सफाई के दौरान उसकी नजर स्टोर रूम में पड़े कबाड़ पर गयी , उस कबाड़ में उसे एक लिफाफा मिला जिसके ऊपर उसी का नाम पड़ा हुआ हुआ था , उत्सुकता बस उसने जल्दी से उस लिफाफे को खोला और जो देखा उसे देख के उसके होश उड़ गए !! मानो उसके पैरो के नीचे की जमीन ही खुसक गयी हो , वो अपना सर पकड़ के अपने घुटनो के बल बैठ गयी , वो अपने आंसू नहीं रोक पा रही थी ||
दोपहर का वक्त था , दिनेश अपनी दुकान बंद करके खाना खाने के लिए घर आया तो उसने देखा सारा सामान इधर उधर बिखरा हुआ है , तो उसने आवाज दी निधि कहाँ हो ? घर की क्या हालत बना रही है , खाना बना अभी तक या नहीं ??
खोजते खोजते दिनेश स्टोर रूम तक आ पंहुचा , उसने देखा निधि बेसुध बैठी बस अपने आंसू टपका रही है !! दिनेश ने निधि को पकड़ के खड़ा किया तो निधि उसके गले लग गयी और फूट फूट कर रोने लग गयी !!
" क्या हुआ निधि ? तुम रो क्यों रही हो ? माँ ने कुछ कहा है क्या ?? "
दिनेश के बार बार पूछने पर भी निधि कोई भी उत्तर नहीं दे रही थी , जब दिनेश ने जोर देकर पूछा तो निधि ने अपने हाथ में पकड़ा हुआ लिफाफा उसकी और बढ़ा दिया ||
" ये क्या है ? " कहते हुए दिनेश ने वो लिफाफा पकड़ा और उसके अंदर रखा वो पत्र निकाल के पढ़ा और असमंजस से उसकी ओर देख कर बोला " ये तो न्युक्ति पत्र है तुम्हारे नाम का , यहाँ स्टोर रूम में क्या कर रहा है ?? "
निधि ने कुछ नहीं कहा लेकिन उसकी नम आँखों ने सब कुछ वयां कर दिया !! दिनेश को बहुत बुरा लगा साथ ही उसे गुस्सा भी आया " इतनी मेहनत जो तुमने रात रात भर जाग जाग कर की थी वो सब धूमिल हो गयी "
" माँ , माँ , कहाँ हो तुम ? " दिनेश डकराता हुआ बाहर निकल गया || उसकी माँ छत पर बैठी धुप ले रही थी || " माँ तुमने ये क्या किया ? " दिनेश ने वो न्युक्ति पत्र माँ के हाथ में थमा कर पूछा ??
पहले तो उसकी माँ चुप रही लेकिन दिनेश के गुस्साते चेहते को देख कर उन्होंने कहा " ये सब हमने तुम्हारी बहन उषा के बेहतर भविष्य के लिए किया था "
" पर माँ , वो कैसे ? "
" तुम्हारे बाबू जी की तबियत ख़राब रहती है , और हमारी भी , हम घर से किसी एक को ही दूर भेज सकते थे , या तो उषा को या फिर बहू को , उषा की अभी शादी नहीं हुई थी , नौकरी में लगी हुई लड़की की शादी अच्छे घर में हो जाती है इसलिए हमने ये फैसला लिया , और वैसे भी निधि की तो शादी हो चुकी है वो माँ भी बन चुकी है , हमने उषा के बेहतर भविष्य के लिए सोचा !!
" माँ तुमने जरा भी नहीं सोचा , बहु की नौकरी लगने तो तुम्हारा घर भी अच्छा हो सकता था ?? " कह कर निराश दिनेश भी शांत पड़ गया ?
बेटी के बेहतर भविष्य के लिए आपने अपनी बहू की जिंदगी अंधकार में धकेल दी , ये कहाँ का न्याय है माँ ? , क्या आपको अपनी पोती गुड़िया की जिंदगी के बारे में जरा भी ख्याल नहीं आया ? क्या ये तुम्हारी बेटी नहीं है ? आज हम महगाई की मार और बेरोजगारी के बोझ के नीचे इस कदर दब चुके है की एक बेटी की पढाई के खर्च का भी निर्वाह नहीं कर पा रहे है !! काश ये कागज का टुकड़ा हमें समय रहते मिल गया होता तो आज हम भी अपने सपनो की दुनिया में जी रहे होते , ये कहते कहते निधि की आँखों से आंसू निकल गए ||
हां ये सच है , ज्यादातर घरों में बहू को बहू और बेटी को बेटी ही समझा जाता है , इसलिए सास कभी मां नहीं बन पाती !!
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