बुढ़ापे की आँखे - हिंदी कहानी | Budhape Ki Aankhen in hindi | Hindi kahani

 

बुढ़ापे की आँखे - हिंदी कहानी | Budhape Ki Aankhen in hindi


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भीड़ लगी थी दीपक के घर पे  पता किया तो जाना के आज दीपक की रबानगी हैं दिल्ली के लिए दिल्ली पढ़ाई करने जा रहा हैं दीपक के पापा ने गर्व से लम्बी सांस लेते हुए कहा  सब मोहल्ले के  लोग ऐसे जमा हो गये थे जैसे कोई तमाशा हो रहा हो  भीड़ को चीरते हुए घर मे प्रबेश किया तो एक और नजारा देखने को मिला  ममता दीपक को ऐसे तैयार कर रहीं थी जैसे की दीपक आज ही घोड़ी चढ़ने बाला हैं l उधर माँ खाने का सामान बांध रहीं थी l तैयारी चल रहीं थी l इसी बीच दीपक कमरे से बाहर आया तो मुझे लगा दीपक रोज की तरह बात चीत करेगा l ये क्या दीपक ने तो एक नजर देखा भी नहीं l बुरा लगा मगर बुरा लगने से नजारा देखना बेहतर समझा |
तब तक जाने का समय हो रहा था , बस अड्डे जाने के लिए सब तैयार थे 65 साल के पिताजी ने 2 ठसाठस भरे बैग उठाये और कंधे पे टांगे साथ ही हाथो मे दो छोटे छोटे थैले भी पकड़े और दीपक के पीछे पीछे चाल दिये l कुछ लोग साथ गये अड्डे तक कुछ वही से देखते रहे  उनके साथ मे गितारी बाबा भी साथ साथ चल रहे थे l बाबा ने दीपक के पापा (विजेंद्र ) से पूछा तुमने अपनी आँखों का ऑप्रेशन करवा लिया?  
नहीं मे सर हिलाते हुए दीपक के पापा ने उत्तर दिया l  तो कम से कम चश्मा ही लेलेता भला आदमी अपना चश्मा साफ करते हुए गितारी बाबा ने कहा  हाँ ले लूंगा एक बार लडके की पढ़ाई की व्यवस्था हो जाए  और वैसे भी बुढ़ापे की आंखे तो संतान ही होती हैं एक बार इसका हो जाए तो मेरी आंखे तो बन ही जाएगी |
गितारी बाबा ने कुछ न कहा और चलते रहे |
बस आ गयी और दीपक बस मे सवार हो गया | बस जाने लगी |  उस  बुढ़ापे की आँखों ने एक बार भी अपने बूढ़े पिताजी और गितारी बाबा की ओर देखना मुनाफिक ना समझा |
  उसके कुछ दिनों बाद गितारी बाबा आपने बेटे के यहाँ शहर मे चले गये | एक दो साल बाद जब गितारी बाबा का दुवारा गाँव मे आना हुआ तो जिज्ञासा बस दीपक के घर चले गये | तो देखना एक बेहद बुजुर्ग घर के बाहर बाले कमरे के बरामदे मे बैठा हैं l पास पहुंच कर देखा तो ये तो दीपक के पापा हैं , आवाज लगाने पर सुन तो लिया आवाज भी पहचान ली |
गितारी बाबा - अरे क्या हुआ तुम्हारी आँखों को |
कुछ नहीं किस्मत की मारी चली गई |
और तुम्हारी बुढ़ापे की आंखे,  मेरा मतलब तुम्हारा बेटा कहा हैं? 
दीपक के पापा को उत्तर देने की जरुरत ना पड़ी |
क्योंकी तब तक अन्दर से एक तीखी बेसुरी निरुख और आदेशमय आवाज आयी - फुर्सत मिले तो चाय रखीं हैं पी लेना  हम कही काम से जा रहे हैं |
अब ना दीपक के पापा बोल रहे थे ना ही गितारी बाबा |

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