वो एक रात, वो एक सफ़र - Hindi Kahaniyan | Kahani In Hindi | Story In Hindi
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रात के 10:30 बजे थे।
कोलकाता रेलवे स्टेशन हर रोज़ की तरह गहमागहमी से भरा हुआ था। सीटी बजाती ट्रेनें, भागते लोग, सामान ढोते कुली… हर ओर एक अफरा-तफरी का आलम।
वेदांत भीड़ से बचते हुए अपने टिकट को देख रहा था –
"S5 कोच, बर्थ नंबर 37"
उसी समय पास से एक लड़की गुज़री। हल्के गुलाबी रंग का स्वेटर, लंबे खुले बाल जो चलते वक्त उसके चेहरे पर बार-बार आ रहे थे। आँखों में घबराहट थी और हाथ में एक टिकट दबा था।
वो रुकी और एक कुली से बोली —
“भैया, S5 कोच किधर है?”
वेदांत ने तुरंत जवाब दिया, “उधर है… मैं भी वहीं जा रहा हूँ।”
लड़की ने उसकी तरफ देखा, हल्की-सी मुस्कान दी और धीरे से बोली — “थैंक यू।”
“तुम्हारा बर्थ नंबर?” वेदांत ने सहजता से पूछा।
“36”
वेदांत हैरान रह गया।
“मतलब तुम मेरी सामने वाली सीट पर हो…!”
लड़की फिर से मुस्कुराई। उस मुस्कान में मासूमियत भी थी और अजनबीपन भी।
सफ़र की शुरुआत - Hindi Kahani
ट्रेन प्लेटफॉर्म से धीरे-धीरे सरकने लगी।
लोग अपनी-अपनी जगह पर बैठ चुके थे।
वेदांत और रिद्धिमा — आमने-सामने।
खिड़की से आती ठंडी हवा, अंधेरी रात और दूर कहीं टिमटिमाती गाँव की बत्तियाँ… माहौल अजीब-सा सुकून दे रहा था।
“पहली बार अकेले सफर कर रही हो?” वेदांत ने बातचीत शुरू की।
रिद्धिमा ने हल्का सिर झुकाकर कहा —
“हाँ… थोड़ा अजीब लग रहा है।”
“डर लग रहा है?”
“डर से ज़्यादा… ऐसा लग रहा है जैसे कुछ नया होने वाला है।”
वेदांत ने उसकी आँखों में देखा और मुस्कुराकर कहा —
“हो सकता है… ये सफ़र यादगार बन जाए।”
बारह बज चुके थे।
ज्यादातर लोग सो चुके थे। डिब्बे की बत्तियाँ हल्की कर दी गई थीं।
वेदांत ऊपर की बर्थ पर जाने के लिए उठ ही रहा था कि अचानक ट्रेन झटके से रुक गई।
रिद्धिमा लड़खड़ाई और सीधे वेदांत के ऊपर गिर गई।उसके बाल वेदांत के चेहरे पर बिखर गए। उसकी साँसें उसकी गर्दन से टकरा रही थीं।
कुछ पलों तक समय जैसे थम गया। दोनों खामोश। बस धड़कनों की आवाज़।
रिद्धिमा सँभलने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसका हाथ अब भी वेदांत की छाती पर टिका हुआ था। “सॉरी…” उसकी आवाज़ काँप रही थी।
वेदांत ने उसकी आँखों में झाँका और धीमे से कहा — “कोई बात नहीं…”
रिद्धिमा की उँगलियाँ अनजाने में उसकी उँगलियों में उलझ गईं।
वेदांत ने हल्का-सा दबाव दिया। ट्रेन फिर से चल पड़ी। लेकिन अब उनके बीच की दूरी कहीं खो गई थी।
रिद्धिमा ने धीरे से सिर वेदांत के कंधे पर रख दिया। “ये सफर… अलग है।”
वेदांत ने मुस्कुराकर कहा — “हाँ… बहुत अलग।”
सुबह की हल्की रोशनी खिड़की से भीतर आ रही थी।
ट्रेन धीमी हो रही थी।
रिद्धिमा खामोश बैठी बाहर देख रही थी। उसकी आँखों में हल्का-सा दर्द था। “तुम यहाँ उतर रही हो?” वेदांत ने धीरे से पूछा।
उसने सिर हिलाया — “हाँ…”
दोनों चुप हो गए। जैसे दोनों के पास कहने को बहुत कुछ था, मगर शब्द नहीं मिल रहे थे।
ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकी।
रिद्धिमा ने बैग उठाया, लेकिन जाने से पहले एक आखिरी बार वेदांत की आँखों में देखा।
“ये सफ़र… याद रहेगा।”
वेदांत बस मुस्कुरा सका। उसकी आँखों में नमी थी।
रिद्धिमा धीरे-धीरे भीड़ में खो गई। गुलाबी स्वेटर दूर होता गया और फिर हमेशा के लिए गायब हो गया।
वेदांत चुपचाप खिड़की से बाहर देखता रहा। ट्रेन फिर से चल पड़ी।
रिद्धिमा जा चुकी थी।
पर उसकी मुस्कान, उसकी खुशबू, और वो आधी रात की नमी… हमेशा वेदांत के दिल में रह गई।
“कुछ सफ़र मंज़िल तक पहुँचने के लिए नहीं होते…
वो सिर्फ़ यादों में हमेशा ज़िंदा रहने के लिए होते हैं।”
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