एक ही दिल की दो धड़कनें - Hindi Kahani | Moral Story in hindi
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हम दोनों बहनें — जया और विजया — एक-दूसरे के बिना अधूरी थीं।
दो मिनट का फासला हमारी उम्र में था, पर दिलों में तो एक भी सांस का नहीं।
हमने हमेशा साथ जीने, साथ हँसने और... यहाँ तक कि साथ शादी करने का सपना देखा था — और किस्मत ने सच में हमारी सुन ली।
मेरी शादी रवि से हुई, और विजया की राहुल से —
दोनों चचेरे भाई, एक ही परिवार, दो घर... बस दीवारों से अलग।
मतलब — न ससुराल का डर, न दूरियों की खामोशी।
हम जब चाहें साथ खाना खा लें, या देर रात बच्चों जैसी बातें कर लें।
ज़िंदगी जैसे अपने सुनहरे मोड़ पर थी।
फिर एक और संयोग — हम दोनों एक साथ गर्भवती हो गईं।
पर यह तो हमने प्लान भी नहीं किया था!
घर में जैसे जश्न का माहौल था।
दोनों घरों में दो नई ज़िंदगियाँ आने वाली थीं — एक साथ।
डिलीवरी का दिन...
हॉस्पिटल के कमरे में हमारी हँसी, हमारे दर्द और हमारी उम्मीदें — सब साथ थे।
लेकिन फिर सब धुंधला होने लगा।
मेरे लिए डॉक्टरों ने ऑपरेशन कहा।
आँखें खुलीं तो मुझे बताया गया — “बधाई हो जया, तुम्हें बेटा हुआ है!”
और विजया को — “एक प्यारी सी बेटी।” हम दोनों खुश थीं।
सोचा, अब तो ज़िंदगी और भी खूबसूरत हो जाएगी।
लेकिन फिर... कुछ बदलने लगा।
बेटा बड़ा होने लगा, पर जैसे जैसे वो बढ़ा...
उसका चेहरा, उसकी मुस्कान — रवि जैसी नहीं लगती थी।
बल्कि... राहुल जैसी।
पहले तो लगा मेरा वहम है।
पर फिर मोहल्ले वाले, रिश्तेदार, सब कहने लगे — “अरे, ये तो राहुल की छाया है बिल्कुल!”
हर बार मैं मुस्कुराकर कह देती — “नहीं, ये मेरा बेटा है, रवि जैसा।”
पर दिल के अंदर कोई बेचैनी थी जो थमने का नाम नहीं ले रही थी।
एक दिन मज़ाक में मैंने रवि से कहा — “देखो न, ये तो राहुल जैसा दिखता है।”
और रवि का चेहरा पल में बदल गया।
“पागलपन मत करो, ऐसी बातें मत बोला करो!” — उनकी आवाज़ में कुछ ऐसा था,
जैसे वो कोई छुपा राज़ जानता हो।
अब मेरा शक डर में बदलने लगा।
क्या मैं किसी झूठ के साथ जी रही हूँ?
क्या सब कुछ वैसा नहीं है जैसा दिखता है?
विजया से सीधे सवाल नहीं कर सकती थी।
सो, एक दिन हँसते हुए कहा —
“तेरा जीजा भी बोलेगा कि बेटा बिल्कुल राहुल पर गया है... आखिर एक ही परिवार का खून है न।”
वो हल्के से मुस्कुराई,
पर वो मुस्कान... छुपाने वाली थी, दिखाने वाली नहीं।
मैं समझ गई — कुछ तो है जो वो नहीं कह रही।
मैंने मायके जाने का बहाना बनाया।
दो दिन में माँ के सामने टूट पड़ी —
“माँ, क्या मुझसे कुछ छिपाया गया है?”
माँ की आँखों में कुछ था — दुःख, प्यार और सच का भार।
“जया... अब तू जान ही ले। तेरी डिलीवरी के वक्त तेरा बच्चा नहीं बच सका था।
विजया ने दो बच्चे जनें थे — एक लड़का और एक लड़की।
उसने... अपना एक बेटा तुझे दे दिया।”
कमरे में सन्नाटा फैल गया।
मेरा दिल रुक गया... फिर धीरे से धड़कने लगा।
मैं ससुराल लौटी — सीधे विजया के पास।
वो कुछ कहने से पहले ही मैंने उसे गले लगा लिया।
“क्यों किया तूने ऐसा?” मैंने पूछा, आँखों से बहते आँसुओं के बीच।
वो बोली — “क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि जब तू आँख खोले तो तेरी गोद खाली हो।
तेरी मुस्कान मुझे अपने बच्चे से भी ज़्यादा प्यारी लगी थी।
और फिर, तेरा बेटा... मेरा भी तो है। खून अलग कहाँ है हमारी रगों में।”
मैं फूट-फूटकर रोई।
उस पल समझ आया — बहनें खून से नहीं, दिल से जुड़ती हैं।
अब जब मैं अपने बेटे को देखती हूँ,
तो उसमें मुझे सिर्फ राहुल नहीं दिखता...
बल्कि अपनी बहन विजया का दिल दिखता है।
वो बेटा नहीं, हम दोनों बहनों के प्यार का जीवंत रूप है —
एक ही दिल की दो धड़कनों का संगम।
“कुछ रिश्ते जन्म से नहीं बनते,
कुछ तो भगवान खुद अपनी कलम से लिख देता है —
बस माँ के आँसू और बहन के त्याग से।”
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