आज दोपहर 12 बजे (भाग 2)
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जैसे ही पापा का कॉल कटा तो मैंने पाया कि मेरे पौरो तले ज़मीन गीली हो रही हैं l खैर ये तो होना लाजिमी था l अब मै कुछ पल के लिए स्तम्भ की भाति संकोचित मनोदशा मे खड़ा रहा l मानो दिमाग़ काम करना ही बंद कर दिया हो l मन मे डर इतना घर कर गया के उसका सीधा सीधा असर दिल पे हो रहा था l धड़कन बहुत तेज हो चली थी, सांसे भी जोर जोर से चलने लगी थीं l अब कुछ देर बाद मै पीछे मुड़ा और धीरे धीरे कदम कमरे की तरफ बढ़ाने लगा l मुझे लगा दीदी अन्दर होंगी मै कैसे उनका सामना करुँगा l अब बो दीदी कहाँ रही बो तो.... l दरबाजे पे पहुंच के अन्दर ऐसे झाँका जैसे कोई चोर चोरी करने आया हो l मै कमरे मे प्रबेश ही किया था के लाइट कट गयी l मुझे लगा किसी ने लाइट ऑफ करी हैं l फ़ौरन दौड़ा और छत पे पंहुचा l वहा पास पड़ोस क़ि चहल पहल मालूम पड़ रही थीं तो थोड़ी राहत महसूस हुई l मै वही छत पे ज़मीन पे ही लेट गया l मगर मच्छर और मौसम ठंडा होने की बजह से बैचैन और घबराहट होरही थीं l मगर मै पड़ा रहा l आंखे बंद क़ीं तो सलोनी सामने खड़ी प्रतीत हुई l
हालत इतनी ख़राब हो चुकी थीं के अगर पड़ोस बाले घर से भी कोई अबाज आये तो दिल जोरो से धड़कने लगता था l मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो दोनों आत्मा मेरे इर्द गिर्द यही कही हैं l
फिर दिमाग़ मे आया चलो हनुमान चालीसा का पाठ करता हूँ तो कोई दिक्कत नहीं होंगी l और हनुमान चालीसा गुनगुनाने लगा l
भूख प्यास तो कब का किनारा कर चुकी थीं l
दीपक उठ हमने तेरे लिए खाना बनाया हैं l भूखा ही सोगया l चल अब कुछ खा ले l कुछ इस तरह कीं आवाज सुनाई सी दी l और खाने की थाली आगे परोस दी जाती हैं l और ये आवाज तो सलोनी की थीं l
आँख लगी ही थीं कि इतना भयंकर सपना l गला सूख गया, बेचैनी होने लगी l डरते डरते पानी के लिए उठा तो पैर नीचे पड़े ग्लास पे पड़ा l और मुँह से जोर दार डर बाली चीख निकाल गयी l
आआआआ कोकोकोन हैं l नीचे देखा तो गिलास था उससे पानी बिखर गया था l ग्लास मे पानी लेके पी ही रहा था l एकाएक आवाज कान मे आयी मुँह से पानी निकल गया l फिर एहसास हुआ घर के मुख्य दरवाजे पर कोई हैं l
डर तो मेरे दिलो दिमाग़ मे भर चुका था l कौन होगा l तब तक फिर से दरबाजा खटखटाने कि आवाज आयी l थोड़ी सी हिम्मत करके दरबाजे पे जाने लगा l सोचते हुए कौन हो सकता हैं l
जब दरबाजा खोला तो देखा मकान मालिक के पापा यानि दादा जी थे l मेने नमस्कार करते हुए उन्हें अन्दर आने को कहा और साथ ही साथ पूछा इतना लेट कैसे दादा जी?
दादा जी ने उत्तर दिया कुछ काम था आने मे देरी हो गयी l
अब थोड़ा डर काम सा महसूस होरहा था l हम बात करते हुए आने लगे l दादा जी बोले अरे ये क्या घर तो बंद हैं चावी तो हैं नहीं l मेने कहा कोई बात नहीं दादा जी मेरे पास सो जाओ l वो बोले ठीक हैं l मै तो चाह रहा था कोई तो पास आ जाये जिससे डर ना लगे क्योंक़ि ऐसी अप्रिय घटना किसी के साथ भी घट सकती हैं l
हम कमरे मे आ चुके थे l मेने दादा जी को उस घटना के बारे मे कुछ ना बताया l चुपचाप सो जाना चाहता था l तब तक दादा जी कहने लगे सो रहे हो इतनी जल्दी?
मेने कहा नहीं बताइये l
कहानी सुनोगे?
हाँ सुना दो l
बोले ठीक हैं सुनाता हूँ l
एक गाँव मे एक बूढा आदमी और उसकी बुढ़िया रहते थे l दोनों बहुत बुजुर्ग और कमजोर थे l बुढ़िया बड़ी मुश्किल से किसी तरह रो रो के खाना बना पाती थीं बो भी एक बक्त का उसी को वो दोनों बक्त खा के गुजारा करते थे l मैंने जिज्ञासा से पूछा के उसके बेटे या बेटी कोई नहीं था?
तो उन्होंने बताया इकलौता बेटा था जो शादी के बाद अपनी पत्नी के साथ शहर मे रहता था l दिन गुजरते गए l एक दिन ऐसा आया बूढा आदमी कमजोरी और बीमारी क़ीं बजह से गुजर गया l तब उसका बेटा शहर बाले घर मे ताला लगा के घर गया l bo सुनाते रहे मुझे नींद आगयी l और सो गया l अरे तुम तो सो गये l
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मेरे पास कोई नहीं था l मेने इधर उधर देखा दादा जी नहीं थे l डर पैदा होने लगा l फिर सोचा बाथरूम मे होंगे l मै उठा और बाहर जाने बाला ही था के मेरा बहुत काम बजने बाला फ़ोन बजा l मकान मालिक का था l बोले बेटा चावी मिल गयी थीं ना, शाम को फ़ोन नहीं कर पाया l व्यस्त था बहुत l मेने प्रतिउत्तर मे पूछा क्या हुआ?
उन्होंने डबी आवाज मे कहा - पिताजी नहीं रहे l
बस फिर क्या था मेरा हाल काटो और खून ना निकलने बाला हो गया l
फिर वो कौन थे? ये प्रश्न बार बार दिमाग़ को गरम कर रहे थे l
अब मेने घर जाने क़ी ठान ली l
Bhoot ki kahani
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आगे क्या होता हैं, रास्ते का सफर कैसा रहा, जानने के लिए जुड़े रहिये, समीक्षा करते रहिये और प्रतीक्षा करते रहिये 🙏🙏
धन्यवाद
1 Comments
Nicely written
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