google.com, pub-3595068494202383, DIRECT, f08c47fec0942fa0 पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के रिश्ते का सच | Real Story Padmavati aur Khilji

पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के रिश्ते का सच | Real Story Padmavati aur Khilji


पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के रिश्ते का सच | Padmavati aur Khilji ke Prem ka sach 

Khilji and padmavati
Story Of Padmavati


 Real Story Padmavati aur Khilji :

आज हम बात करने बाले है पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के प्रेम की झूठी कहानियो के बारे ... दरअसल दोनों एक दूसरे को जानते तक नहीं थे ... तो फिर क्यों खिलजी पद्मावती को अपने हरम लाना चाहता था 

आइये जानते है पूरे कहानी के बारे में ..

अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली की सत्ता के लालच में आ कर 1296 में अपने ही सगे चाचा यानि फिरोज खिलजी की हत्या कर के दिल्ली की गद्दी पर बैठ गया था और उन्ही के बेटी यानि अपनी बहन से ही जबरजस्ती निकाह भी कर लिया था | 

पद्मिनी शिहल के राजा गंदर्भी की बेटी थी , शिहल आज का श्रीलंका कहा जाता है ..पद्मावती को चित्तोड़ के महाराज रतन सिंह स्वंवर में जीत कर अपने राज महल लाये थे |

राजा रतन सिंह उच्च कोटि के राजा होने के साथ साथ कला और संगीत के प्रेमी थी , उनके दरबार में कई संगीतकार थे , उन्ही में से एक था राघव चेतन नाम का संगीतकार , वो एक अच्छा संगीतकार होने के साथ साथ काला जादू भी करता था , एक दिन राजा ने उसे काला जादू करते हुए पकड़ लिया था जिसके बाद उसे रतन सिंह ने अपने राज्य से निष्कासित कर दिया था , अपना निरादर देख चेतन बागी हो कर खिलजी के राज्य में उसकी शरण में जा पंहुचा ,और कुछ ही दिनों में  चित्तोड़ के किले की खूबसूरती के साथ साथ रानी पद्मावती के सौंदर्य को खिलजी के सामने इस तरह से प्रस्तुत करने लगा की खिलजी के मन में रानी पतद्मवाती को पाने की चाहत दिनों दिन बढ़ने लगी , राघव चेतन ने एक दिन  अलाउद्दीन खिलजी से कहा इतनी खूबसूरत रानी पद्मावती तो आपकी बेगम होनी चाहिए .. बस फिर क्या था , खिलजी अपने मन में रानी पद्मावती के बारे में गलत विचार लिए अपनी फ़ौज के साथ चित्तोड़ की ओर कूच करने लगा |

जब खिलजी चित्तोड़ के किले के पास पहुंचा तो किले के चारो ओर कड़ी सुरक्षा में बीर राजपूत सेनिको की घेराबंदी देख उसे मजबूरन रुकना पड़ा , लेकिन महत्वाकांक्षी अपने मन में पाप लिए बैठा था , इसलिए उसके लिए पल पल भरी पड़ रहा था , जल्दी से किसी तरह रानी पद्मावती की एक झलक देख लेना चाहता था | 

उसने कई दिनों तक चित्तोड़ के किले बाहर घेरा बंदी करता रहा और धीरे धीरे चित्तोड़ के सेनिको को मौत के घाट उतारता रहा | 

जब ये खबर किले में राजा रतन सिंह को पता चली तो उन्होंने खिलजी का प्रतिकार करना शुरू कर दिया ... महीनो तक युद्ध चलता रहा ,,, लेकिन खिलजी किले के अंदर प्रवेश नहीं कर पा रहा था |

जब खिलजी को महसूस हुआ की वो राजपूतानी सैनिको को हरा कर किले के अंदर प्रवेश नहीं कर पायेगा .. तो उसने कुटिलता दिखाते हुए राजा रतन सिंह को सन्देश भेजा ,,, की रानी पद्मावती की सुंदरता का कायल है वो एक बार रानी से भेट करना चाहता है और ये भेट शिस्टाचार से परिपूर्ण होगी ... रानी को वो बहन की नजरो से ही देखेगा ...

अलाउद्दीन खिलजी का सन्देश सुन कर राजा रतन सिंह ने प्रजा और राज्य का हित देखते हुए खिलजी का प्रस्ताव मान लिया , और अगले दिन खिलजी को महल के अंदर आने का इंतजाम करबा दिया |

अलाउद्दीन अपने कुछ भरोसेमंद सैनिको के साथ चीतौड़गढ किले में प्रवेश कर गया , उसका अंदर स्वागत किया गया , और शर्त के अनुसार उसे रानी पद्मावती को दिखाया गया , लेकिन रानी खुद सामने नहीं आयी , खिलजी को एक बड़े शीशे में रानी का प्रतिविम्ब दिखाया गया | खिलजी को पद्मावती का प्रतिविम्ब इतना पसंद आया की उसकी नियत बिगड़ गयी , सोचने लगा था की जिसका प्रतिविम्ब ही इतना सुन्दर हो तो वो खुद कितना ही सुन्दर होगा | 

अब खिलजी ने रानी पद्मावती को अपने हराम ले जाने का ठान लिया | और अपने सैनिको की मदद से राजा रतन सिंह को धोखे से बंदी बना कर अपने कबीले में के चला गया | और रानी पद्मावती को सन्देश भेजा की अगर राजा रतन सिंह और अपने राज्य के सभी मर्दो को जिन्दा देखना चाहती हो तो तुम्हे मेरे साथ मेरे हरम में चलना पड़ेगा |

अगले दिन खिलजी को सन्देश मिला की रानी उसके साथ हरम में चलने को तैयार है लेकिन उनकी शर्त है की राजा रतन सिंह को उन्हें जिन्दा छोड़ना होगा ... अलाउद्दीन ने रानी की शर्त मंजूर करली ,,, 

अगली सुबह जब चालीस डोली सजाई गयी और उसमे रानी पद्मावती नहीं बल्कि चित्तोड़ के प्रधान सेना पति गोरा और बदल सिंह ने अपनी तलबारे और सस्त्र ले कर अपने चुनिंदा सैनिको के साथ डोलियों में बैठ कर किले के बाहर आये ...

सजी हुई डोली देख कर राजा रतन सिंह अत्यंत दुखी हुए , उन्हें लगाने लगा था की उनकी रानी उनके साथ धोखा करके इस जाहिल के जा रही है ,, लेकिन ऐसा नहीं था ... 

डोलियों को अपने कबीले की और आता देख खिलजी का ख़ुशी का ठिकाना नहीं था ... डोलियां उसके मैं कबीले के अंदर पहुचायी गयी .. तो उनमे से तलबारे ले कर  गोरा और बादल सिंह अपने बीर सिपाहियों के साथ बाहर आये और खिलजी की सेना पर टूट पड़े .. इस तरह से वे राजा रतन सिंह को खिलजी की कैद से छुड़ा कर ले जाने में सफल रहे ... लेकिन गोरा को युद्ध में अपने प्राण गवाने पड़े ....

अपने साथ हुए धोखे की बजह से खिलजी गुस्से में बौखला गया और अपने सैनिको को किले में घुसने का आदेश दे दिया | महीनो तक युद्ध चलता रहा , अब किले के अंदर खाने पीने की बस्तुए भी ख़तम हो चुकी थी , जिसकी बजह से चित्तोड़ के सैनिको से लेकर अंदर रहने बाले सभी भूख से ही मरने बाले थे , इसलिए रतन सिंह ने अब युद्ध करने का निश्चय किया और अपनी तलबार ले कर अपने सेनापति बादल के साथ निकल पड़े .... और आत्म रक्षा करते हुए युद्ध में बीरगति को प्राप्त हो गए |

रानी को पता चल चुका था की अब खिलजी का किले में प्रवेश कोई नहीं रोक सकता , उनके पास ज्यादा समय नहीं था इसलिए उन्होंने अंदर उपस्थित सभी स्त्रियों को एक जगह इकठ्ठा किया और उनसे पूछा की तुम्हारी क्या राय है , तो सभी ने आत्मदाह करना स्वीकार किया लेकिन खिलजी के साथ उसके हरम में जाना नहीं स्वीकारा |

अब रानी पद्मावती ने किले के अंदर विशाल आग जलाई और सभी स्त्रियों ने एक साथ जय भवानी का नारा लगाते हुए खुद को आग में समर्पित कर अग्नि देव को अपने जीवन की अंतिम आहुति दे दी |


Padmavati and Khilji


जब खिलजी किले के अंदर पद्मावती की खोज में किले के अंदर पहुंचा तो उसे सिर्फ आग में जलती हुई रानी के साथ अन्य सैनिको की स्त्रियां ही दिखाई दी | खिलजी ने चित्तोड़ का किला जरूर जीत लिया था लेकिन , वो एक भारीतय नारी और उसके पावन स्त्रीत्व से हार गया था | अपने आत्मसम्मन की लड़ाई हारने की बौखलाहट में खिलजी ने चित्तोड़ के आस पास मौजूद तीस हजार निर्दोषो की निर्मम हत्या करबा दी थी || और चित्तोड़ पर अपना कब्जा कर लिया ||





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