google.com, pub-3595068494202383, DIRECT, f08c47fec0942fa0 आज दोपहर १२ बजे - भाग 4 | भूतिया कहानी - डरावनी कहानी | Horror Stories - Bhoot ki kahani

आज दोपहर १२ बजे - भाग 4 | भूतिया कहानी - डरावनी कहानी | Horror Stories - Bhoot ki kahani

 

आज दोपहर १२ बजे - भाग 4 | भूतिया कहानी - डरावनी कहानी |  Horror Stories -  Bhoot ki kahani


      दीपक सोच रहा था कि मैं यहां कहाँ आ गया हूँ ये कोनसी दुनिया है | यहां सब लोग उसी पोशाक में दिख रहे है जिसमे मैंने सालों पहले देखे थे | उसके बाद या तो लुप्त हो गए थे या पता नहीं मर गए थे l अगर मर गए थे तो ये लोग कौन है ऐसा सोचते हुए उसके शरीर में चीटिया सी काटने लगी | रोंगटे खड़े हो गए थे | उसे अब डर शताने लगा था | ये सोचते सोचते बो पास के एक पेड़ के नीचे बैठ गया था | बो भाग जाना चाहता था लेकिन इमली के बारे में सोच के वो अपनी अतीत के बारे में सोच कर रुक गया | आंख बंद करके सोचने लगा अब तो इमली से बात किये बिना नहीं जायेगा |

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   थोड़े समय बाद जब दीपक ने आंखे खोली तो उसके सामने बहुत सुन्दर पोशाक में इमली हाथ में एक गुलाब का फूल लिए हुए खड़ी है | इस पोशाक में इमली बेहद खूबसूरत मानो किसी अप्सरा की भांति होटो पे लाली लगाए हुए , बालो को उस सुन्दर ढंग से संभाला हुआ है जिसमे से केबल कुछ जुल्फ लहरा रही थी जो की उसकी पलको से होती हुई उसके गुलाबी गोरे कोमल गालों को स्पर्श करके खुद को आनंदित कर रही थी | नाक में जो नथुनी थी अपनी अलग ही चमक फैला रही थी | दूसरा गाल  बालो की आड़ में छुपा हुआ था , मानो बार बार छुप छुप के झांक रहा हो | उसी छुपने झाँकने की झलक के साथ कानो की बालियाँ अपनी उपस्थिति से उसके मुख की सुंदरता को चार चाँद लगा रहे थीं | गले में चमकता हार, और उसके साथ बाली मालाये इमली की सुंदरता को बढ़ाये जा रहे थे | इमली एक साक्षात् रति की देवी नजर आ रही थी |
   
    दीपक बैठा उसे आँखे गढ़ाए हुए देखे जा रहा था | अब इमली के आगे बढ़ने के साथ साथ छम छम की आवाज आ रही थी | पास आके इमली ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया | दीपक ने उसका हाथ पकड़ा और खड़ा हो गया | अब बो दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखे डाल के अविरल देखे जा रहे थे | अब इमली धीरे धीरे चलने लगी , थोड़ा आगे निकलने पर उसने ऐसे अदाकारी से पीछे मुड़ के देखा जैसे मानो बो अकेले खड़े दीपक को आने का न्योता दे रही हो | उत्सुकता बस दीपक भी बिना कुछ सोचे समझे उसके पीछे पीछे चलने लगा | दीपक एक टक इमली की पीछे काले लम्बे बालो की मोटी चोटी जो उसके नितम्बो के उभार के आस पास हल चल कर रहीं थी उसको निहारते हुए , पीछे पीछे चलता चला जा रहा था | सिलसिल ये यु ही काफी आगे तक चलता रहा | दीपक अपनी सूद बुद भूल चूका था | बो उसके पीछे चलते चलते काफी आगे निकल चुका था | इमली भी इठलाती मटकती हुई मध् मस्त करने वाली चाल से चले जा रही थी | आलम ये था अब दिन ढल चुका था | और शाम जवान हो चली थी, अपने पूरे जोश के साथ अँधेरा बिखेर रही थी | इधर चाँद भी अपने जलवे विखेरने  को बेताब हो रहा था | दोनों इतनी आगे निकल आए थे वहाँ से चारो और दूर दूर तक कुछ भी नजर नहीं आ रहा था |
  
    अब उस स्थान से काफी आगे निकल जाने के बाद इमली रुकी और पीछे मुड़ के देखने लगी | अब दीपक उसके बिलकुल समीप आ चुका था | बिना कोई बात किये दीपक ने उसे अपनी बहो में भर लिया | इमली भी उसकी छाती से लग गयी | अब दोनों की एक दूसरे के  प्रति पकड़ मजबूत होती जा रही थी | दोनों की बाजुए अपना अपना जोर आजमा रही थी | अब दीपक ने अपने नरम काँपते हुए होठो से इमली के गर्दन और कंधे के आस पास चुंबन किया | ऐसा करते ही इमली और रोमांचित होने लगी | और उसने अपनी पकड़ और भी मजबूत की | इमली की पकड़ से दीपक का हौसला और भी बढ़ने लगा | अब उसने दो चार और चुम्बन किये , अब दीपक के हाथ भी हरकत में आने लगे , उसके हाथ इमली के पीठ के खुले हिस्से का बखूवी जायजा करने लगे थे | इमली के शरीर में बिजली दौड़ने जैसा अनुभव हो रहा था |

     अब दीपक का एक हाथ उसके खुले पेट से होता हुआ बक्ष स्थल के उभर की उचाई मापते हुए गर्दन पे आ रुके | अब दोनों एक दूसरे के होठो का रस पान करने लगे थे | सांसे , धड़कने जोर पकड़ चुके थे | और सिलसिला ये यू ही तब तक चलता रहा जब तक दोनों के अंदर लगी श्रंगार रस की बरसों पहले की आग शांत न हो गयी | दीपक ऐसा महसूस कर रहा था मनो उसके ऊपर स्वम रति की देवी की कृपा बरस गयी हो | अव दीपक ने खुद को इमली के साथ चिपक कर एक शांत एकांत स्थान पर उसके हाथ को थाम कर बैठा पाया | जैसे कि दोनों तीन बर्ष पहले नदी के पुल के ऊपर बैठते थे | शाम को शांत पानी में पत्थर फेक कर पानी में तरंगो को उसके मूल स्थान से विछड़ते हुए देखा करते थे | अव वो उसी पल को याद करते हुए इमली से पूछता है |

दीपक  - तुम उस दिन आयी क्यों नहीं थी | मैं अब भी वहाँ पर तुम्हारा इंतजार करता हूँ |
इमली - दीपक की और देखते हुए , मैं आयी थी |
दीपक - नहीं , मेने रात के ८ बजे तक इंतजार किया था |
इमली - मैं स्कूल से आने के बाद से ही तुम्हारा इंतजार कर रही थी |
दीपक - सब झूठ , तो मुझसे मिली क्यों नहीं |
इमली - मिलने लायक नहीं रही थी चीखते हुए कहा |
दीपक - स्वर तेज करते हुए क्यों क्या हुआ था ?
इमली - तुम्हारे गांव का गुंडा पप्पू की शिकार हो गयी थी |
दीपक - मैं कुछ समझा नहीं , पूरी बात बताओ |

          इमली ने अपने आँखों से आशू पोछते हुए बताया - मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी , नदी के पुल के पास बाले पेड़ के नीचे | तभी वहाँ पे पप्पू अपनी गुंडों के साथ बंदूक लिए आया |
मैं डरने लगी और भागी , कुछ समझ न आने के कारण में पास के खेत में गयी | वही पप्पू पहुंचा और बंदूक तानते हुए कहा - डरो मत , मरुँगा नहीं | मुझे तुम्हारे और दीपक के बारे में सब पता है | तुम दोनों रोज यह मस्तियाँ करते हो | मेने कहा - ऐसा कुछ नहीं है , मुझे जाने दो | उसने कहा जाने दूंगा | लेकिन उससे पहले मेरी इच्छा पूरी करो | मैं समझ चुकी थी ये क्या चाहता है |
तब तक तुम नहीं आये थे | मेने चिल्लाना चाहा लेकिन तब तक उसने मेरा मुँह पकड़ के दवा लिया और मेरे साथ दुराचार करता रहा | मेरी हालत ख़राब हो गयी थी | फिर वो मुझे उठा के अपनी गाड़ी में लेगया और शाम को घर पे छोड़ गया | साथ ही घर वालो ने अगर किसी को बताया तो उन्हें जान से मरने की धमकी दे के चला गया | घर वाले डर गए थे | किसी को नहीं बताया | उसी दिन से घर वालो ने मेरा स्कूल जाना बंद करा दिया | मैं घुटने लगी थी उस कैद बाली जिंदगी से इसलिए मेने खुद को आजाद करना सही समझा | और एक दिन मेने पंखे से लटक कर खुद को आज़ाद कर लिया |
दीपक के मुँह से बस क्या ?? ही निकला और बो पसीने से सराबोर हो गया | सन्नाटा सा छा गया उसके उसकी आँखों और कानो के आगे | अब उसकी आवाज गले की गले में ही रह गयी |
सोचने लगा अब तक मैं एक आत्मा के साथ हूँ ? अब सब शून्य जैसा लगने लगा था | डर के साथ साथ भय उसे अब खाये जा रहा था | अव वो अपनी पूरी ऊर्जा के साथ आंखे बंद करके दौड़ रहा था | और दौड़ता ही रहा | एक लम्बा रास्ता तय करने के बाद उसे एक झोपडी दिखी उसे देख के रुका | उसकी सांसे बहुत तेज चल रही थी | हाफ रहा था | अब उसका फोन बजता हुआ सुनाई दिया |
उसने  देखना कि उसके पापा के नंबर से ये २७ वी कॉल है , उसे पता ही नहीं चला |
उसने कॉल किया |
हेलो पापा |
हाँ - कहाँ हो कॉल ही नहीं उठा रहे हो ?
दीपक - मैं यहाँ शहर से दूर मुन्नी चाची के साथ आया था |
पापा - तुम इतने हाफ क्यों रहे हो ? और कौन चाची जो बरसों पहले चल बसी थी |
दीपक के पास कोई शव्द नहीं थे |
पापा- कब गए वहाँ
दीपक - आज दोपर १२ बजे |||

कहानी जारी रहेगी ....................

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