Hindi Kahaniya | Story in Hindi love : romantic story of love - मजहबी इश्क़ - अनोखी दास्तान 1

 

Hindi Kahaniya | Story in Hindi love : romantic story of love - मजहबी इश्क़  - अनोखी दास्तान



मजहबी इश्क़  - अनोखी दास्तान - भाग -1 

दरअसल ये बात है उन दिनों की जब माउंटबेटन ने देश को आज़ाद कर देने और हिन्दू मुस्लिम के आधार पर देश का बिभाजन करने का फरमान सुना दिया था .. देश की गली गली चप्पे चप्पे पर अपना अपना अधिकार जताने के चलते हिन्दू और मुस्लिम के बीच दंगे चल रहे थे ,,, लोग जिन्दा जलाये जा रहे थे , क़त्ल किये जा रहे थे .. लोग बेघर होते जा रहे थे |

बही से निकल कर आती है सागर और सलमा की अनोखी प्रेम कहानी ....

सागर देश भक्ति में लिप्त होने के साथ साथ सलमा के प्यार में भी था , वही दूसरी तरफ मजहब और खानदान में अच्छी पकड़ रखने बाले जफ़र अली उर्फ़ जैफी साहब की बेटी सलमा .... 




सलमा आज डरते छुपते हुए अपने घर से दूर , सागर से मिलने के लिए अपनी और अपने घर की मान मर्यादा सब भूल कर पैदल टूटे फूटे रास्ते चली जा रही थी |  साथ ही इस सोच में पड़ी हुई थी कि अगर कही कम्बख्तमारा देश भक्ति के जुनून में फस कर कही किसी आंदोलन में या फिर किसी असेम्ब्ली का हिस्सा बनाने न चला गया हो |

अगर ऐसा हुआ तो मैं तो मारी ही जाऊगी , और ऊपर से अगर अब्बू जान को खबर भी हो गयी कि मैं घर से बाहिर गयी हूँ तो ,अब्बू जान हमारी जान का कत्ले आम ही कर डालेंगे | अल्लाह करे वो हमसे मिलने के खातिर आ ही जाये ...


सागर आज मिलना तो नहीं चाहता था , लेकिन उसे कल शाम को ही सलमा का खत मिला था , जिसमे सलमा उससे मिलने के लिए उताबलि हो रही थी , आज कल उसके पास ज्यादा समय नहीं हो पा रहा था , उसे देश की आजादी और उससे सम्बन्धित कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना उसका शौक बल्कि देश का नागरिक होने के नाते अपना कर्तव्य समझता था | सागर उस समय के नामी नेता नेहरू और सरदार पटेल जी को अपना आदर्श मानता था ,और खुद में उनकी छवि देखता था |


सागर और सलमा अक्सर एक पुरानी हवेली के टूटे खंडहर के पास ही मिला करते थे | आज भी सलमा ने उसे उसी जगह पर मिलने के लिए खत में लिखा था | सागर पेड़ से ओट लिए खड़ा था और इंतजार कर रहा था |

उसे पीछे से किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी , उसने तुरंत अपनी पिस्तौल निकाली और तेजी से पीछे की और घूमते हुए अपनी पिस्तौल सामने की और तान दी | अपने सामने पिस्तौल लिए खड़े सागर को देख सलमा को इतना डर लग गया कि उसका बदन पसीने से तर बदर हो गया ... और उसने अपनी आंखे बंद कर ली ...


ओह्ह सलमा तुम थी , एक आवाज नहीं दे सकती थी , अगर एक सेकिंड और बीत जाती तो अनर्थ हो जाता मेरे हाथो , अपनी पिस्तौल को अपनी कमर पर रखते हुए सागर ने सलमा को अपने सीने के पास अपनी मजबूत बहो में भींच लिया ...

सलमा इतनी तेज डर गयी थी इस बात का अंदाज़ा उसकी सांसो और उसके धड़कते सीने की रफ्तार से पता लगाया जा सकता था .. 

सलमा सागर के सीने से लिप्त जरूर गयी थी , लेकिन उसका डर अभी भी उसके जिहेन में था , रह रह कर एक बात उसके दिल में आ रही थी , कि कही मैंने आज ऐसे माहौल में सागर से मिलने आने की गलती तो नहीं करदी , जब देश हिन्दू और मुस्लिम धर्म के नाम पर बटबारा चाह रहे है , दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे है , कही सागर अपनी मुहब्बत से परे अपने धर्म को आगे मान कर अपने बिरादरी के लोगो का साथ तो नहीं दे रहा ... 

कही मेरा प्यार झूठा तो नहीं साबित करने बाला ?

कही मेरी मुहब्बत की हत्या तो नहीं करने बाला ?

नहीं नहीं , मेरी मुहब्बत पर मुझे पूरा यकीन है कम से कम वो ऐसा तो नहीं कर सकता , फिर चाहे मेरी मुहब्बत को अपनाये या नहीं .. 

इन्ही सब सवालो के साथ अब सलमा ने खुद को संभालने की कोशिश की , और अब सागर से अलग होते हुए 

अपनी आँखों से आंसू साफ़ किये |


सागर ने सलमा की आँखों में झांकते हुए पूछा "तुम इतना डर की अभी तक खुद को संभाल नहीं पा रही हो "

सलमा ने एक लम्बी साँस ली और बगाबत भरे तेबर में कहा "हमने अपनी मुहब्बत को पहले कभी इस तरह की नकाबपोशी करते हुए नहीं देखा , हमने तो हमेशा इन हाथो में या तो हमारे रेशम से बालो के लिए सुगंधित पुष्पों का गजरा देखा था या फिर प्रेम प्रतीक लाल रंग का गुलाब "


सागर ने अपने चेहरे पर हलकी सी मुस्कान लाते हुए कहा "इतनी नाराजगी , गुस्ताखी के लिए माफ़ी चाहता हूँ , साथ ही एक बात बता दू , देख के अभी जो हालत है उन्हें देख कर हमे ये सब लेना पड़ा , जब तुम आयी तो हमे लगा की कोई हमारा बिरोधी या फिर कोई अवसरबादी है सो पिस्तौल निकालनी पड़ी "


सलमा ने फिर से नाराजगी से कहा "तो यहाँ हमसे मिलने आये थे या फिर किसी से जंग का एलान करके आये थे "

सागर "सलमा मेरी जान समझने की कोशिश करो , हलाल बद से बत्तर हो रहे है, आज़ादी मिलने की तारीख की घोषणा हो चुकी है , कल शाम को ही हमारे मुहल्ले में बगाबत हो गयी थी , अंग्रेजी हुकूमत ने पूरे मुहल्ले को नजरबंद होने की सलाह दी है और जो भी बाहिर घूमता पाया गया उसे उठा के जेल में डाल देने की धमकी दी है , लेकिन लोग फिर भी नहीं मान रहे है , एक दूसरे के सर कलम करने पर तुले हुए है  "


"हाय अल्लाह , तो तुम फिर क्यों बाहिर निकल कर आये हो , अपनी जान क्यों जोखिम में डाल रहे हो " सलमा ने चिंता व्यक्ति की |

सागर ने फिर से सलमा को गले लगाया और कहा "तुम्हारे लिए , अगर न आता तो भी घर में जी न लगता , और जब तुम इस भयानक समय में मेरे लिये यहाँ आ सकती हो तो मैं क्यों नहीं "


सागर के गले लग कर सलमा ने कहा "सागर एक बात बोलू "

सागर ने सलमा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा "हाँ बोलो न मेरी जान तुम्हारी बात सुनाने के लिए ही तो मैं यहां आया हूँ "

सलमा "पहले हमसे वादा करो , कि तुम गुस्सा नहीं करोगे "

"अरे हाँ बाबा नहीं करुगा गुस्सा अब बोलो भी " सागर ने सलमा के कमर में हाथ रखते हुए कहा  

सलमा ने कहा "अब्बू  कह रहे थे कि हमे अब दूसरे मुल्क पाकिस्तान में जाना पड़ेगा "

सलमा की बात सुन कर सागर दुखी स्वर में बोला "तो तुम यही रुक जाना "

"पर कैसे , तुम्हारे घर बाले ही हमारी जान के दुश्मन बन जायेगे " सलमा ने कहा 


अब सागर ने कुछ नहीं कहा , बस एक दर्शक मात्र बन कर सलमा को निहारता ही रहा |

सलमा ने फिर कहा "हम इसीलिए risk ले कर तुमसे मिलने आये थे , हो सकता है ये हमारी आखिर मुलाकात न बन जाये "

सागर ने कहा "सलमा भगवान के लिए तुम ऐसी बात न बोलो , चाहे हालात जो भी बने हम ऐसे ही मिलते रहेंगे , और अपनी मंजिल तक जरूर पहुचेगे "

 सलमा ने पूछा "मंजिल ??"

सागर ने कहा "शादी"

सलमा ने कहा "ये शायद मुमकिन न हो , अम्मी और अब्बू शादी के लिए तो बिलकुल भी इजाजत नहीं देंगे "

सागर ने भोलेपन के साथ पूछा "तो क्या हमारी चाहते यू ही अधूरी अधूरी सी रह जाएगी "

दोनों गले लग गए ... आँखों से आंसू बह रहे थे ..


तभी सलमा अलग होते हुए बोली , मुझे लग रहा है इधर अब बहुत सारे लोग आ रहे है, हमे जाना पड़ेगा  

सागर ने आगे जाकर देखा तो सच में बहुत से उपद्रवी लोग आस पास मझमा लगा रहे थे |

सागर को भी लगा की अब हम लोगो को यहां एक साथ ज्यादा देर नहीं रहना चाहिए ,अगर इन लोगो को भनक भी लग गयी की हिन्दू और मुस्लिम एक साथ मिल रहे है तो यही सर कलम कर दिए जायेगे |


अपनी बाते अधूरी छोड़ के सागर ने सलमा को छुपते छुपाते हुए उस खंडहर से पीछे बाले रास्ते से बाहर निकाल कर उसे उसके घर की ओर रवाना कर दिया | 

जाते जाते सलमा के आंखों में आंसू , उन आंसुओ में बहुत सारे प्रश्न झलक रहे थे | साथ ही आगे न मिल पाने की असंका भी दिख रही थी |


उसे इस बात का डर न था की अब्बू घर के दरवाजे पर गड़ासी लिए खड़े मेरा इंतजार कर रहे होंगे .. उसे डर था की कही लोग सागर को मुझसे मिलता देख कर उसे कोई नुकसान पहुंचा दे ,,,

Story To Be Continued On Youtube...

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