google.com, pub-3595068494202383, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Motivational story for Students in Hindi - Biography Of Dheeru Bhai Ambani

Motivational story for Students in Hindi - Biography Of Dheeru Bhai Ambani

 


बायोग्राफी ऑफ़ धीरू भाई अम्बानी | कैसे धीरे भाई अम्बानी बने भारत के सबसे पैसे बाले व्यक्ति 




अगर आप कथाये और कहानिया सुनना पसंद करते है तो आपको ये कहानी जरूर सुननी चाहिए , ये कहानी किसी  पारी या जादुई कहानी से कम नहीं है , ये उस आदमी के जीवन पर आधारित है जिसने परिबरिक परिस्थितियों के चलते अपनी पढ़ाई तक पूरी नहीं कर पायी थी , यहाँ तक की उसे अपनी दशवी की पढ़ाई भी बीच में ही छोड़नी पड़ी थी और परिबार का पेट पालन करने के लिए तब से मेहनत करनी पड़ी थी , जब हाथो में मेहनत करने के लिए कुदाल नहीं बल्कि खिलोने होते है | उस व्यक्ति ने फल और नास्ते की रेहड़ी से ले कर पैट्रोल पम्प पर तेल भरने तक काम किया था | हम आज ऐसे महान शख्स के बारे में बता रहे है जो पैदा तो जरूर एक साधारण परिबार में हुआ था लेकिन जब उसने इस दुनिया को अलविदा कहा था तो उसे देश और दुनिया जानने लगी थी , उसके द्वारा स्थापित की गयी कंपनी की वैल्यू 62 हजार करोड़ से भी ज्यादा थी |

बिजनेस की दुनिया का सबसे सफल चेहरा बन कर सामने आने बाले धीरू भाई अम्बानी जिन्होंने हर एक गरीब इंसान को सीखने की कोशिश की , जोखिम उठाना सफलता पाने का मूल मंत्र है , उन्होंने बार बार सिद्ध किया था की रिस्क लेना बिजिनेस के लिए ही नहीं बल्कि बहुत आगे जाने तक एक जरिया है |

धीरू भाई का जन्म 28 दिसंबर 1932 को गुजरात के जूनागण में हुआ था , इनके पिता हीराचंद गोबर्धन भाई अम्बानी पेशे से एक शिक्षक थे और माता का जमुना बेन , जो की एक गृहणी थी | इनके चार भाई बहन और भी थे , परिबार बड़ा होने की बजह से इनके पिता हीरा चाँद जी को कठिनाइयों का सामना करन पड़ रहा था , घर की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गयी की पिता का हाथ बटाने के लिए धीरू भाई को अपनी दसवीं की पढ़ाई भी बीच  में ही रोकनी पड़ी | और अब वे छोटे मोठे कामो की तलाश में जुट गए | सबसे पहले उन्होंने फल और नास्ते के सामान बेचना शुरू किया लेकिन शुरुआती सफलता न मिलने की बजह से उन्होंने ये काम बंद कर धार्मिक स्थल पर जा कर पकोड़ियां बेचने लगे , लेकिन ये काम भी सीजनल और आने बाले पर्यटकों पर निर्भर होने की बजह से ज्यादा सफल नहीं हो पा रहा था , अब धीरू भाई के पिता ने उन्हें नौकरी करने के लिए प्रेरित किया , अब धीरे भाई अपने बड़े भाई के साथ यमन में नौकरी करने चले गए , वहां उन्होंने सेल कंपनी के पैट्रोल पम्प पर काम करना शुरू कर दिया , अपनी मेहनत और समझ के दम पर दो साल के अंदर ही मैनेजर तक सफर तय कर लिया था | 

नौकरी के दौरान उनका मन नौकरी करने में कम बल्कि एक सफल बिजिनेसमैन बनने में ज्यादा लगा रहता था , उनके इस जूनून का अंदाजा आप उस घटना से लगा सकते है , जब ने शेल के पैट्रोल पम्प ओर जॉब कर रहे थे तो वहां चाय 25 पैसे में मिल जाती थी फिर भी अम्बानी वहां चाय न पी कर पास  में स्थित बड़े होटल में जाते थे वहां चाय के लिए उन्हें चार गुना अधिक पैसा चुकाना पड़ता था , 

जब एक दिन उनके सहियोगी ने उन्हें इसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया " वहां बड़े बड़े सफल व्यापारी चाय पीने आते है , मैं इसलिए वहां अधिक खर्चा करता हूँ ताकि उनके सफल बिजिनेस आईडिया सुन सकू ...

उन्होंने अपना पहला सफल बिजिनेस यमन में ही शुरू किया , दरअसल उन दिनों यमन में चंडी के सिक्को का चलन था , धीरू भाई ने ये भाप लिया था की इन सिक्को में इस्तेमाल चांदी का मूल्य इस सिक्को से कही ज्यादा है , उन्होंने इस अवसर का फायदा उठाते हुए यमन के सिक्के जमा करना शुरू कर दिए और उन्हें गला कर लन्दन के एक कंपनी को चांदी की आपूर्ति करने लगे | ये बात जब यमन की सरकार तक पहुंची थी तब तक बे मोटा मुनाफा कमा चुके थे |

ये घटना व्यान कर चुकी थी की धीरू भाई एक सफल बिजिनेसमैन बनाने जा रहे है |

यमन में धीरूभाई अंबानी जी अच्छा खासा मुनाफा कमा रहे थे सभी यमन में स्वतंत्रता के लिए लड़ाइयां शुरू हो गई जिसकी वजह से हजारों भारतीयों को यमन छोड़कर स्वदेश वापस आना पड़ा उन्हें भारतीयों में धीरुभाई भी शामिल थे अब नौकरी चले जाने के बाद धीरू भाई ने अपने देश में लौट कर पूर्णतया बिजनेस चलाने के बारे में सोचा धीरुभाई को अब मार्केट की अच्छी पकड़ हो चुकी थी, उन्होंने कुछ दिन और भारतीय बाजारों को समझा तब उन्हें महसूस हुआ कि भारतीय बाजारों में पॉलिस्टर की बहुत मांग चल रही है और विदेशी बाजारों में भारतीय जय केदार मसालों की विशेष मांग है , 

अब उन्हें बिजनेस का आईडिया तो मिल चुका था लेकिन उनके पास बड़ा इन्वेस्टमेंट करने के लिए ऐसा नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने मामा त्रियंबक दास के साथ मिलकर मसाले और शक्कर का बिजनेस शुरू कर दिया यहीं से रिलायंस कॉरपोरेशन लिमिटेड की शुरुआत हुई थी,

अपने इस बिजनेस में लगातार सफलता प्राप्त करने के बाद धीरुभाई सूत के काम में प्रवेश कर चुके थे, सूत के व्यापार में अंबानी को जल्दी ही अपार सफलता प्राप्त हुई और be मुंबई में सूट के व्यापारी संघ के कर्ता-धर्ता बना दिए गए, लेकिन सूत्र के काम में बहुत ज्यादा जोखिम होने की वजह से इनके मामा ने इनका साथ छोड़ दिया, मामा का साथ छूट जाने के बाद भी रिलायंस के बिजनेस में कोई खास फर्क नहीं आया और उसके बाद 1966 में पहली बार रिलायंस टेक्सटाइल अस्तित्व में आया,

इसी साल अहमदाबाद के नरोरा में अपनी टेक्सटाइल मिल की स्थापना की इसके बाद से विमल ब्रांड की इस तरीके से डिजाइनिंग की गई कि यह हर घर में पसंद किए जाने लगा ,विमल भारतीय बाजारों में एक बड़ा भारतीय ब्रांड बन चुका था। विमल उन्होंने अपने बड़े भाई रमणीक दास के बेटे के नाम पर रखा था।

जीवन के उतार-चढ़ाव और संघर्षों के बीच इनकी शादी कोकिलाबेन से हुई थी और उनसे 4 बच्चे हुए जिनमें दो बेटे मुकेश और अनिल तथा दो बेटियां दीप्ति और मीना हुई,

अब तक धीरुभाई भारत में एक सफल और बड़े बिजनेसमैन के रूप में खुद को स्थापित कर चुके थे इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।

कपड़े और मसालों के व्यापार के बाद रिलायंस ने कम्युनिकेशन और पेट्रोलियम के क्षेत्र में भी बड़ी कामयाबी हासिल की और देखते ही देखते भारत की सबसे बड़ी कंपनी बन गई।

लगातार अपने बिजनेस को बढ़ाते रहने की सिलसिले की वजह से अब उनका स्वास्थ्य स्थिर रहने लगा और जा स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह से 6 जुलाई 2002 के दिन धीरुभाई ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया गरीबी और तंगहाली में जन्म लेने वाले धीरुभाई जिस दिन इस दुनिया में अंतिम सांस ली थी तब उनके द्वारा स्थापित की गई कंपनी रिलायंस की कुल संपत्ति 62000 करोड से भी ज्यादा हो चुकी थी ।

साल 2000 में अंबानी देश के सबसे अमीर व्यक्ति के रूप में उभर कर सामने आए थे उनके जीवन पर आधारित बॉलीवुड में एक फिल्म भी बनाई गई जिसका नाम गुरु है इस फिल्म में धीरूभाई का किरदार मशहूर अभिनेता अभिषेक बच्चन ने निभाया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार धीरुभाई की मृत्यु के बाद इनके बिजनेस को इनके बेटे मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी ने संभाला था बाद में दोनों भाइयों के बीच बटवारा हो गया...



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