google.com, pub-3595068494202383, DIRECT, f08c47fec0942fa0 सुप्रभात सुविचार : सुप्रभात सुविचार हिन्दी SMS : Suprabhat Suvichar In Hindi

सुप्रभात सुविचार : सुप्रभात सुविचार हिन्दी SMS : Suprabhat Suvichar In Hindi

 

सुप्रभात सुविचार : सुप्रभात सुविचार हिन्दी SMS : सुप्रभात सुविचार हिन्दी







सुप्रभात सुविचार : सुप्रभात सुविचार हिन्दी SMS : सुप्रभात सुविचार हिन्दी

आज का विषय : " मन मंदिर से स्वयं मंदिर की राह की ओर  "

साध संगत जी, आज का विषय है जो अति कृपा कर आप सन्तो ने भेजे है वह है "मन मंदिर से स्वयं मंदिर की राह" जो रोचक और प्रेणादायक भी है। इससे यह ज्ञात होता कि यह जो विषय का शीर्षक है वह इम्तिहान की प्रस्न है जिसका उत्तर देना है कि आज तक जो सीखे है हम सत्संगह से क्या वह आप का मन, मन मंदिर सा हुआ या नही? सत्य वचन जी, कहते है "निरन्तर सत्संगह से जुड़े रहने पर संकोचित मन खुल जाता है सन्त की अमृत वाणी हृदय में अपना स्थान बना लेता है। कहते है, "एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनियाद साधु संगत साध की कटे कोटिन अपराध" 

      साध संगत जी, जिस प्रकार किसी कैदी का अपराध को जज साहब माफ कर देता है तो उस कैदी का मन पुलकित हो जाता है और प्रभु को बार-बार धन्यबाद देता है कहता है "लाख लाख तेरा शुकर है सच्चे पातशाह तूने मुझे बड़ी मुसीबत से बचा लिया। इस तरह ही एक गुरसिख का मन होता है जैसे ही सत्य का  ज्ञान होता तैसे ही उसका मन मंदिर समान हो जाता है हुजूर शहंशाह जी कहते है 

सुप्रभात सुविचार : 

"इक क्षण इक पल देख प्रभु को जिसने भी यश गाया है। 

कहे 'अवतार' सुनो भाई संतो काल चक्र न आया है।" 

        आगे कहते है कि

"दूर करे सब मन की चिता मन का कमल खिलाता है। 

कहे 'अवतार' मिले गुरु पूरा रूह को राम मिलाता है।

       साध संगत जी, इस तरह हुजूर बाबा जी भी कहे है कि 

"सतगुरु के की ज्योति जगी हुई है जिस मन में। 

इसमें कुछ संदेह नही कि ज्ञान ठहरता उस मन मे।

     साध संगत जी, कृपा है सतगुरु साहिब का जो ब्रह्मज्ञान पाते ही मन, मन मंदिर समान हो जाता है। साध संहत जी, अब हर दिन सत्संगह मिल रही है वह भी शुभह शुभह घर बैठे ही। उसके साथ साथ सप्ताह में तीन दिन हुजूर सतगुरु माता जी का दर्शन भी हो जाता है। आये हे सन्त जी, यह एहसास मन मे रखे कि सत्संगह वह स्थल जो सारे  अवगुणों का काट है। जहा अवगुण दूर हुआ मन स्वतः ही मंदिर समान बन जाता है।


    बड़ी कृपा आप सन्त महापुरषो का जो गुरुमत में topic/विषय भेज कर हम सब को शब्दो के माध्यम से आशीर्वाद लेने का जो अभिलाषा उसे पूरा करते है। 


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       साध संगत जी, निरंकार के कृपा से जो जीवन मिला है उसमें मन का विशेष महत्व है। जीवन का ही सारा खेल है। खेल का खिलाड़ी मन ही तो है। मन के लिये कुछ भी कर लो पर मन जो चाहता है वही करता है। इसी वजह से मनमति की ओर इशारा करते हुए हुजूर शहंशाह जी कहते है "रे मन जान गुरु के मुख से ध्यान प्रभु का धरता जा। कहे 'अवतार' समझ कर इसको तू ही तू ही करता जा।" आगे कहते है। "निर्मल मन यह हो नही सकता तीर्थ जा जा न्हासने से। पाप करोड़ो धूल जाते 'अवतार' गुरु डर आने से।" इसी लिये हुजूर शहंशाह कहते है "निराकार यह शांति पुंज है मन मे खूब बसा ले तू। 'अवतार' कहे कि मान गुरु की निज घर वासा पा ले तू।"

       साध संगत जी, मन को बॉधने के लिये सत्संगह बताया गया है , जहा अनेक महापुरषो के पवन चरण और उनके अनेक पवन वचन और गीत भजन आते है उसी धारा के जरिये ही मन को काबू में किया जा सकता है। हुजूर शहंशाह जी कहते है "जिसके मन मे नाम बसा है उसकी महिमा सारी है। 'अवतार' जाऊँ मैं वारे वारे जीवन भी बलिहारी है।"

      साध संगत जी हुजूर बाबा जी भी अनेक इल्म बताए है मन के लिये जिसके जरिये मन को काबू में किया जा सकता है मन को यह विश्वास दिलाना पड़ता है कि गुरुमत में ही सारे सुख है "ऐ मन रख विश्वास प्रभु पर नित आनन्द उठायेगा। पक्का है विश्वास तेरा तो दुख भी सुख बन जायेगा।"

     कृपा करें आशीर्वाद दे कि मन को यह प्रयत्न करें कि गुरुमत बंधा रहे नही तो यह मन ऐसा ऐसा कारनामा करवाएगा जिसका हमारी सोच में भी नही आता। इस लिये हुजूर सतगुरु माता जी, आज कल सन्तो महात्माओं पर विशेष कृपा कर रही है। अब तो एक नही, दो नही हर सप्ताह तीन दिन दर्शन दे रही है ताकि महात्माओं का जो विश्वास सतगुरु पे है वह और मजबूत व पक्का हो जाये।

विषय :- "सेवा सत्संगह सिमरण"


साध संगत जी,

      अति सुंदर विषय को चुन कर आप सन्त महात्माओ ने दास पे कृपा किये है अब अरदास भी प्यार भरी लभ्जो से सुकराना ही सुकराना करता है आप जी के श्रीचरणों में, कियोकि जो शीर्षक है विषय का, वह यही सिखाता है कि "सेवा सत्संगह सुमिरण के बिन भक्त्ति सदा अधूरी है। इन तीनो के संगम से ही भक्त्ति होती पूरी है।"

      साध संगत जी, सतगुरु के कृपा से ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लेना ही भक्त्ति के कार्य समाप्त हो जाते है ऐसा नही है। ब्रह्मज्ञान तो सत्य और असत्य का पर्दा उठता है। जो हमारी खोज होती है ,उसकी समाप्ति है। पर यहा से सही मायने में हमारी भक्त्ति आरम्भ होती है। और वह जरिया है, सेवा सत्संगह और सुमिरण यह तीनों ही हमें जोड़े रखता गुरु के चरणों से, इससे हमें परमसत्ता का ऐहसास हर पल,  छीन छीन करवाता रहता है। सन्त जन कहते है "ऐ मन मेरे भक्त्ति से ही जीवन मे रस आयेगा। अगर नही है भक्त्ति तो फिर नीरस ही रह जायेगा।" आगे सन्त महात्मा समझते हुए कहते है "शुकर किये जा तू मालिक का शुकराना ही भक्त्ति है। शिकवे गिले को लब पर अपने न लाना ही भक्त्ति है।" "गुरु के सुर में अपने सुर भी मिल जाये तो भक्त्ति है। कहे 'हरदेव' गुरु वचनों को अपनाए तो भक्त्ति है।


सुप्रभात सुविचार :  विषय : "मानवता की सेवा की लगन"

      साध संगत जी आज का विषय सन्तो महापुरुषों ने रखा है "मानवता की सेवा की लगन"। 

      साध संगत जी, पाँच परण हम सतगुरु से किये है और तीन काम उन्होंने हमे दिए है करने के लिये वह तीन काम है सत्संगह, सेवा और सुमरण, यही है वह सेवा जो महापुरषों ने विषय के रूप में रखा है "मानवता की सेवा की लगन" जो भी सेवा गुरुमत में की जाये वह मानवता का ही सेवा में होता है। अपना मिशन इन्ही तीन कामो से विख्यात है।


      गुरुमत में कई तरीके से सेवा की जाती है। शरीर की मस्कत से किया गया सेवा, अपने कमाई से अर्जित किये गए अन-धन से सेवा, जो भी जिस योग है उसी योग्यता से भी गुरुमत में सेवा दी जाती है। पर ध्यान रहे इन सभी सेवा में भाव निस्वार्थ होना अनिवार्य है।


सुप्रभात सुविचार :      हुजूर बाबा जी कहते है।

"सेवा सत्संग सुमिरण के बिन भक्त्ति सदा अधूरी है।

इन तीनो से संगम से ही भक्त्ति होती पूरी है।

गुरु का सेवक सेवा से न आँख चुराया करता है।

गुरु का सेवक सेवा में जी जान लगता है।

गुरु के सेवक को न होती यश की भी अभिलाषा है।

कहे हरदेव कभी न मन मे फल की रखता आशा है।


      साध संगत जी, सतगुरु कहते है जो जन शरीर से सेवा करता है वह सदये स्वस्थ रहता है। जो धन से सेवा करता है उसे धन की कमी नही होती इस सेवा में जैसे Building Fund सेवा, Dispensary Fund सेवा, land सेवा, लंगर सेवा के लिये अन धन दोनों से भी की जाती है। इसके अलावा, शिक्षा सेवा, Special Land Fund सेवा, इत्यादि।

    साध संगत जी, गुरु के दर के लिये सेवा के लिये हमेशा तौयार रहे, सेवा जो भी हो जिस प्रकार आप सक्षम है वह प्रवान हो दातार सब की खाली झोली भर देता है। इन्ही की रहमो कर्मो का आशा है दातार सब का मनोकामना पूरी करे, खुसिया हर परिवार में हो।


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