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Story In Hindi to Read - Punarvivah

 

Story In Hindi to Read - Punarvivah | पुनर्विवाह 

Story In Hindi to Read
Hindi kahaniyan


पुनर्विवाह ....

" डिवोर्स के पूरे पांच साल होने के बाबजूद भी कैलाश ने अभी तक दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा है , बस अपनी चार साल की बेटी शैली के बारे में ही हर पल सोचता रहता है .. हालाँकि जब से दोनों अलग हुए है तब से केबल एक बार ही अपनी बेटी से मिल सका है बेचारा कैलाश " कैलाश की बुआ रानी ने अपनी फ्रेंड शीला से डिटेल शेयर की ..

" यार क्या ही बताये आज कल के इन बच्चो के बारे में , उम्र गुजर जाती है लेकिन फिर भी अपने पार्टनर का चुनाव नहीं कर पाते है , अब मेरी भतीजी को ही देख लो पूरे 31 साल की हो चुकी है , लॉ की पढ़ाई भी पूरी कर ली फिर भी अभी तक उसे अपनी पसंद का कोई लड़का नहीं मिला है .. कहती है जब मिल जायेगा तो शादी कर लूंगी .."


" सुन शीला , एक काम कर .. मेरे कैलाश से एक बार अपनी भतीजी श्रद्धा को मिलबाने का प्लान तो कर , हो न हो ऊपर बाले ने इनकी जोड़ी को ठीक करने की ठान ली हो " रानी ने शीला का हाथ पकड़ के गुजारिश की ..

" तेरे मुँह में घी शक्कर , अगर ऐसा हो जाये तो मेरे बूढ़े भाई की बहुत बड़ी जिम्मेदारी और टेंशन कम हो जाएगी .. बेचारे ताउम्र नौकरी करते रहे और अब बुढ़ापे में बेटी की शादी हो जाये इसी कामना में जी रहे है " शीला ने अपना दुखड़ा रोया |


दरअसल ये लगभग 65  साल महिलाये बचपन से लेकर कॉलेज तक साथ में दोस्त थी ,, यदाकदा एक दूसरे से मिलने आती जाती रहती थी .. आज शीला बड़े दिनों बाद अपनी खास दोस्त रानी के घर उससे मिलने और उसके हाल चाल जानने के लिए आयी हुई थी |


कैलाश पेशे से बहुत बड़ा आर्टिटेक्ट था वो खुद की एक फर्म चलता था , लेकिन जब से उसका डाइवोर्स हुआ था तब से ही उसने काम पर से ध्यान हटा कर मयखाने पर ध्यान ज्यादा लगा रखा था , शहर में उसका जितना नाम अपनी काबियत के लिए था अब उससे ज्यादा बड़ा नाम दारू पीने के लिए होता जा रहा था |


उसे उसके घर बाले , माता पिता बार बार यही समझाते थे की दारू और नशे की लत छोड़ के अब अपने बिजनेस और आगे की लाइफ पर फोकस करे , और कोई अच्छी से लड़की पसंद करके जल्दी से शादी कर ले , क्युकी कोर्ट से तो उसे ग्रीन सिग्नल मिल ही चुका था , उसका डाइवोर्स हो ही चुका था | लेकिन घर बाले समझाए समझते थक चुके थे , उसे चाहिए थी तो बस आस्था ... 


आस्था उसकी डाइवोर्स हो चुकी पत्नी का नाम था | जिसे वो कभी हद से ज्यादा प्यार किया करता था लेकिन कुछ गलतफैमियो ने इतनी जगह बना ली की दोनों के रिश्ते को तार तार कर दिया , और नौबत यहाँ तक आ गयी की उन्हें कोर्ट के सहारे खुद को अलग करना पड़ा | वे दोनों अलग तो जरूर हो गए लेकिन अंदर से बिलकुल कमजोर हो गये .. कैलाश तो खुद को संभालने के लिए शराब का सहारा ले लिया करता था लेकिन आस्था अपने आशुओ का |


डाइवोर्स के बाद आस्था को अपने पापा, भाई और भाभी के साथ रह रही थी , उसे भाई और भाभी का साथ और प्यार तो कम लेकिन उनके ताने ज्यादा मिलते थे , लेकिन वो सब कुछ सह कर भी अपनी दुलारी बेटी शैली को इस बात की भनक तक नहीं लगने देती थी की वो अपने नहीं बल्कि खैरात के घर में रहती है | उसे अगर रोना होता था तो वो अपने बेटी के पीछे रोती थी , उसके सामने खुद को एक स्ट्रॉग सिंगल पैरेंट की तरह पेश करती थी |


उसके पापा की पेंशन इतनी नहीं आती थी की वो अपनी और बेटी की जरूरतों को पूरा कर सके , इसलिए अब आस्था को लगने लगा था की शैली भी पढेगी उसके लिए भी पैसे की जरूरत होगी .. हालाँकि कैलाश उसे हर महीने भत्ते के रूप में दस हजार रूपये देता था , लेकिन उससे भी गुजरा आसान नहीं था , उसने नौकरी करने का फैसला किया ...


एक दिन उसके पापा ने आस्था को बुला के कहा " आस्था बेटा , जिंदगी बहुत बड़ी होती है , और ये भगवान द्वारा दी हुई एक अनमोल होती है , इसे कटना नहीं जीना चाहिए ..इसलिए हमारी मानो तो एक बार फिर से अपना घर बसाने के बारे सोचो .. ताकि आपकी जिंदगी .. जिंदगी बन जाये |"


अपनी आँखों में आंसू लिए आस्था ने कहा " पापा हम एक बार ही जीते है , एक बार ही मरते है , और प्यार भी एक बार ही करते है , ये सब मैंने अपने हिस्से का कर चुकी हूँ , अब मेरी कोई तम्मना नहीं है , मैं बस चाहती हूँ मेरी बेटी शैली की जिंदगी जिंदगी बन जाये .. और कुछ नहीं ..."


आस्था के पापा बस अपने आंसू पौछते और आंखे मलते रह गए .. उन्होंने एक अंतिम प्रयास किया और कहा " हमारे लिए न सही अपनी स्वर्गीय माँ के बास्ते ही सही .. क्युकी मैंने उनसे वादा किया था की तुम्हारे बाद मैं अपनी बेटी को कभी भी कोई दिक्कत नहीं आने दूंगा "

ज्यादा कहने पर आस्था मान तो गयी लेकिन उसके शर्त थी की उसे फाॅर्स नहीं किया जायेगा , वो अपनी मर्जी से ही करेगी |


आस्था के पापा ने अपने दोस्तों और कुछ मीटिंग साइट्स की मदद से कुछ रिश्ते रेडी किये और उनके साथ आस्था की मीटिंग फिक्स करवाई .. लेकिन आस्था को कोई भी पसंद नहीं आ रहा था , हालाँकि उनकी अलग अलग बजहे थी | एक दिन आस्था के पापा ने आस्था को एक और मीटिंग के बारे में बताया और उसे मिलने के लिए राजी किया .. 


आस्था को जहाँ मिलने जाना था ये आस्था की फेवरिट जगहों में एक थी , उसे ज्यादातर अपने दोस्तों या फिर अकेले में क्वालिटी टाइम के लिए आउटडोर खुले में जाना पसंद हुआ करता था | बताई हुई जगह यानी मरीन ड्राइव पर पहुंच कर चिरपरिचित अंदाज़ में आस्था आने इंसान का इंतजार कर रही थी .. वो बार बार अपनी घडी में देख रही थी .. फिर उसने अपने पीछे मुड़ कर देखा की जिस पत्थर से टिक कर वो खड़ी थी ठीक उसके पीछे बाले पर बैठा इंसान उसका इंतजार कर रहा था .. जैसे ही दोनों की नजरे टकराई .. आंसू निकल गए ... और आस्था बिना कुछ कहे वहां से जाने लगी .. 


" आस्था आज तुम्हारी मीटिंग मेरे से ही है , क्या तुम दस की मीट कर सकती हो " जाती हुई आस्था के कानो में ये आवाज गुंजी .. उसने पीछे मुड़ कर फिर से देखा कही मेरी आंखे धोखा तो नहीं खा रही .. वो स्तब्ध खड़ी रह गयी .. उसे अपनी आँखों पर भरोषा नहीं हो रहा था , उसके टंगे जवाव दे रही थी , उसे अपना भर पृथ्वी के भर के बराबर लग रहा था .. बस उसके मुँह से एक ही आवाज निकली " कैलाश तुम ?"


अब कैलाश चल कर उसके पास आ चुका था , उसे अपनी बाहो में भर तो लेना चाह रहा था लेकिन अभी वो न तो उसकी पत्नी थी और न मासूका .. उसने आगे की हुई अपनी बाहे बापस पीछे कर ली .. और आस्था को बापस उसी जगह बैठने को कहा | कुछ पल सोचने के बाद आस्था मान गयी और दस मिंट की बातचीत के लिए राजी हो गयी |


" जब से तुमसे दूरी बनी है , मारी जिंदगी ही बदल गयी है , मुझे अब जिंदगी , जिंदगी नहीं बस बोझ लगने लगी है .. मुझे हर शाम को तुम्हारे हाथो की हेड मसाज याद आती है " कैलाश और भी बहुत कुछ कहना चाहता था लेकिन आस्था ने उसे रोक दिया .. " हमारे पास केबल दस मिंट है , मैं चाहती हूँ इसमें रोने धोने से अच्छा कुछ ओर बात की जाये " | कैलाश चुप हो गया ... आस्था घर के बाकी मेंबर्स के बारे में पूछती रही .. 

कैलाश ने शैली से मिलने की इच्छा जताई .. तो आस्था ने थोड़े नरम लहजे में कह दिया " कभी टाइम निकल के उससे मिलबाने के लिए लाएगी "

आस्था की बात सुन के कैलाश को बड़ी ख़ुशी हुई कम से कम इस बहाने आस्था फिर से उसे मिलने तो आएगी ही .. 

जाते जाते आस्था ने कैलाश से पूछा " आपने अभी तक दूसरी शादी क्यों नहीं की ?" 

कैलाश खामोश खड़ा रहा .. फिर कुछ सोचने के बाद बोला " क्या हम फिर से शादी कर सकते है "

आस्था वहां से जाने लगी और जाते जाते बोली " मैंने कभी इसके बारे में नहीं सोचा "

" एक बार सोचके जरूर देखना .. शायद इरादा बदल जाये " कैलाश ने कहा | 


घर पहुंच के आस्था ने पापा से पूछा " पापा क्या आपको पता था की वो लड़का कौन था जो मुझसे मिलने बाला था " | अपना चस्मा उतारते हुए पापा ने जवाव दिया " हाँ मुझे पता था वो कैलाश था " | " पापा जब आपको सब कुछ पता था फिर भी मुझे बिना बताये उसके साथ मिलने क्यों भेज दिया " पापा की आँखों में आंसू थे उन्होंने कहा " बेटा इस उम्र में मैं नहीं चाहता की मेरी बेटी फिर से नयी शुरुआत करे , जो गलतियां हो गयी उन्हें फिर से दुहराए , बच्चा हमारे जमाने में डाइवोर्स जैसे शब्द ही नहीं हुआ करते थे , गलतियाँ होती थी लेकिन लड़ झगड़ कर शाम को बापस अपने हमसफर के पास ही आना होता था ,,, इसलिए मैंने फिर से वही कोशिश की शायद एक बार नजदीक जाके देखो , होसकता है सालों के गिले शिकबे फिर से नए रिश्ते के रूप लेले ..." 

आस्था ने गदगद होते हुए अपने पापा को गले लगा लिया और थैंक यू कहा ||

" पापा मैं आज कैलाश से दस मिंट मिली आज मुझे उसमे वो पुराना कैलाश नजर ही नहीं आया .. "

" तो फिर एक बार फिर से एक मीट और अरेंज करबाए ...?" | " नहीं पापा .. अब मैं खुद ही अरेंज कर लूंगी "


बहुत सोचने के बाद , आस्था ने दुबारा से कैलाश के साथ डेट पर जाने का फैसला किया ... पहली डेट , दुसरी डेट और फिर ये सिलसिला दुवारा से शादी होने के बाद ही रुका .. 

आस्था और कैलाश के पुर्नविवाह से दोनों फैमिली एक बार फिर से ख़ुशी ख़ुशी सुखी जीवन का आनंद लेने लगे .. शैली का भविष्य भी उज्ज्वज हो गया .. कैलाश एक बार फिर से शहर का सबसे जानामाना आर्टिटेक के रूप में मशहूर होने लगा ,, सब कुछ तो पहले जैसा ही होने लगा था बस फर्क था तो बस इतना इस बार कैलाश एक जिम्मेदार और भरोसेमंद हस्बैंड बन चुका था || उसे अब अपनी पत्नी आस्था और बेटी शैली में अपनी जिंदगी नजर आती थी ||




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