दो कदम साथ - Hindi Kahaniyan | Kahani In Hindi | Story In Hindi

 दो कदम साथ - Hindi Kahaniyan | Kahani In Hindi | Story In Hindi

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सड़क पर हल्की धूप बिखरी थी। गर्मी के थपेड़ों से सूखी ज़मीन पर चटकती दरारें साफ़ दिख रही थीं। उसी सड़क पर दो छोटे बच्चे, लड़ते-झगड़ते, किसी अदृश्य मंज़िल की ओर बढ़ रहे थे।

"तू हमेशा ऐसा क्यों करता है?!"

पाँच साल का छोटा अंशू भारी बैग पीठ पर टांगे हुए रोते-रोते चिल्ला रहा था। उसका चेहरा आँसुओं से भीग चुका था, और पैरों में ताकत जैसे जवाब दे रही थी।

"ओ भैया... रुक जा ना... मुझसे चला नहीं जा रहा..."

उसकी आवाज़ दर्द और मासूमियत से कांप रही थी।

लेकिन आगे चल रहा उसका बड़ा भाई अर्जुन, जो मुश्किल से सात या आठ साल का होगा, बिना पीछे देखे तेज़ क़दमों से बढ़ता जा रहा था। उसके हाथ खाली थे, और चेहरे पर हल्की-सी अकड़।

वो जानबूझकर सुन नहीं रहा था। मानो दुनिया की कोई चीज़ उसे रोक न सके।

अंशू गिरता-पड़ता, रोता-चिल्लाता पीछे-पीछे चला आ रहा था।

सड़क खत्म हुई, और सामने एक बड़ा चौराहा आ गया। गाड़ियों का शोर कान फाड़ देने वाला था – स्कूटी, बाइक, टैम्पो, कारें... सब आड़ी-तिरछी दौड़ रही थीं। लोग इधर-उधर भाग रहे थे।

अर्जुन पहली बार रुका। उसने पीछे मुड़कर देखा।

अंशू थकान और गुस्से से लाल चेहरा लिये पास आया। आते ही उसने ज़मीन पर बैग पटका और भाई पर छोटे-छोटे मुक्कों से बरस पड़ा।

"तू ऐसा क्यों करता है?! तू मेरा भाई है या दुश्मन?"

वो रोते-रोते चिल्ला रहा था, पैरों से ज़मीन पटक रहा था। उसकी हिचकियाँ दिल को छू लेने वाली थीं।

लेकिन अर्जुन चुप रहा। बस हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर आई। उसने बैग उठाया, कंधे पर डाला... और फिर नीचे बैठ गया।

"चढ़ जा।" उसने छोटे को इशारा किया।

अंशू का गुस्सा पल भर में गायब हो गया। उसने अपनी आस्तीन से आँसू पोंछे, और भाई की पीठ पर चढ़ गया।

अर्जुन ने दोनों तरफ़ ट्रैफ़िक देखा, सावधानी से सड़क पार की। उसकी नन्ही टाँगें डगमगा रही थीं, लेकिन उसकी आँखों में एक अटूट भरोसा था।

छोटा भाई उसकी कमर से लिपटा, और पहली बार चुप हो गया।

सड़क पार करते ही अर्जुन ने अंशू को नीचे उतारा, बैग उसके हाथ में थमाया। फिर से उसी बेपरवाह अंदाज़ में आगे बढ़ गया।

अंशू ने बैग उठाया। इस बार उसने रोया नहीं। उसकी आँखों में गुस्से की जगह समझदारी थी।

क्योंकि अब वो जान चुका था – उसका बड़ा भाई उसे छोड़कर नहीं जा रहा, बल्कि उसे मज़बूत बना रहा है।

कभी-कभी प्यार का मतलब ये नहीं कि कोई हर वक़्त तुम्हारा हाथ थामे रहे। कभी-कभी प्यार का मतलब ये होता है कि कोई तुम्हें इतना मज़बूत बना दे कि तुम अकेले चल सको।

और यही ज़िन्दगी का सबक है –

अगर मंज़िल बड़ी है, तो रास्ता अपने क़दमों से तय करना होगा।

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