google.com, pub-3595068494202383, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Horror Stories in Hindi - आज दोपहर १२ बजे - भूतिया कहानी - डरावनी कहानी, Bhoot ki kahani - horror stories real in Hindi

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Horror Stories in Hindi - आज दोपहर १२ बजे - भूतिया कहानी - डरावनी कहानी, Bhoot ki kahani - horror stories real in Hindi

    


आज दोपहर १२ बजे -horror stories real in Hindi

bhoot ki kahani


                              आज दोपहर १२ बजे - bhoot ki kahani - Horror Stories

   

          गांव के बाहर बाहर होते हुए रास्ता शहर की ऒर जाता है, रास्ता पूरी तरह से तंग हालत में है, साइकिल या मोटर साइकिल से चलने से पैदल चलना बेहतर जान पड़ता है उस रस्ते पर, गांव से शहर की दूरी तय करने में तकरीबन ३ घंटे  का समय लग जाता है, अगर किसी को शहर जाना हो ऒर बापस भी आना हो तो तड़के ही जाना पड़ता है, अन्यथा शहर में ही कही रुकना पड़ता है, इस लम्बी दूरी के रस्ते में मुश्किल से कुछेक घर पड़ते है या यू कहे पानी पीने का एकाध साधन है ,
   मैं १२ वी था कॉलेज शहर में होने के कारण मुझे रोज शहर से आने जाने में असमर्थता थी, इसलिए पापा ने फैसला किया कि मुझे शहर में रह कर ही पढ़ाई करनी होगी, समय समय पर घर से कोई मेरे पास  आता जाता रहेगा, अगले दिन ही पापा और मै शहर गए और कालेज के पास में एक पापा के जान पहचान बालों के यहाँ किराये पर कमरा दिलवा दिया , और सारा जरूरी सामान भी दिलवा दिया था ,
मै भी खुश था , और मन लगा के पढ़ाई करने लगा , कभी कभी मां और कभी बहन मेरे पास आ जाया करती थी , इसी तरह  ४ से ५ महीने गुजर गए, 
        एक दिन शाम को तकरीबन ६ बजे मै कालेज से बापस आ रहा था , तो गली के नुक्कड़ पे देखा सलोनी ऒर उसकी एक सहेली बैग लटकाये खड़ी है, मुझे लगा कोई और होगा , चलो पास चलके देखता हूँ, अरे ये तो सलोनी है,

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 horror stories real in Hindi
सलोनी दीदी - मैने पास जाके आवाज लगाई, यहाँ क्या कर रही हो,
दीदी -- अरे दीपक तू अच्छा हुआ मिल गया वरना हम तो यू ही खड़े रहते , घर जाने को कुछ नहीं मिल रहा था इसलिए ,
तो अब क्या करोगी , चलो मेरे साथ कमरे पर , वही रुकना, नहीं तो कुछ है ही नहीं जाने को- मैने कहा
  चलो कितनी दूर है ?
बस यही तो रहा १० मिंट का रास्ता है यहां से,
इतना लेट कैसे होगया - मेैने पूछा
कालेज में आज कुछ प्रोग्राम था और सर ने एक्स्ट्रा क्लास ली थी, वैसे भी हम तो महीने में एक या दो बार ही क्लास लेने आते है - सलोनी ने कहा
  फरीन तुम क्यों नहीं कुछ बोल रही ?
कुछ नहीं बस ऐसे ही- फरीन से उत्तर मिला ।
बाते चल ही रही थी कि जहा रहता था बो घर चुका था,
     ये क्या घर का ताला लगा हुआ था, मेैने पड़ोस बाली भाभी को अबाज लगाई बो अंदर थी ,अंदर  आने को कहा में गया और चाभी उन्ही के पास थी , मेरे पूछने पर उन्होंने बताया के जहा में रहता था उस घर बाले सभी किसी जरुरी काम से गांव गए है , शायद कल तक आएंगे, और ज्यादा कुछ बता के नहीं गए है,
मै बाहर आया , अपने बाले माकन का ताला खोला और अपने कमरे में पहुंच गया,
  मेैने दीदी को बैठने के लिए कहा , और मै घर कि लाइट जलाने लगा,
जैसे ही मैं कमरे से बाहर बाली लाइट जलाने गया तो मुझे कुछ अजीव से महसूस हो रहा
था , मुझे लगा मेरे पीछे कोई खड़ा है, पीछे मुड़ के देखा कोई नहीं था, मै जल्दी से अपने कमरे में जाने लगा,
जैसे ही मै अंदर गया तो सलोनी और फरीन किचन में कुछ करती हुयी दिखाई दी , मेैने पूछा क्या बना रही हो , कुछ नहीं दाल रोटी खाने का मन है उसी के लिए सामान ढूंढ रहे है,
सब वही रखा है , मै देदू मैंने पूछा ?
नहीं हम ढूंढ लेंगे तुम अपना कुछ और काम करलो, ठीक है बोल के मै बैठ गया,
  जैसे मै बैठा ही था मुझे घर की छत बाली बाथरूम की टंकी से पानी आने की आवाज सुनाई दी, मै तुरंत दौड़ के जाने लगा ज्यो ही मै छत पे पंहुचा , मुझे लगा अभी अभी कोई बाथरूम में घुसा है और शायद मुँह धो रहा है, कौन हो सकता है, ये मेरे अंदर डर  पैदा करने बाला सबाल था ,क्योंकि घर में तो हमारे शिवाय कोई है ही नहीं, डरते डरते मेने अपने पैर आगे बढ़ाये , दरबाजे पर पहुंचते ही मेरे मुँह से तेज अबाज निकल गयी और मैं पीछे गिरते गिरते बचा , 


     हिंदी कहानी - अरेंज मैरिज

bhoot ki kahani - Horror Stories

 तुतूतूम  यहाँ कब आयी अभी तो नीचे थी मेने अपने माथे का पसीना साफ करते हुए फरीन से पूछा ?

मै तो कब से यही हूँ।,  क्यों क्या हुआ ? फरीन ने जवाव दिया !
   कुछ नहीं कहता हुआ मै दौड़ के कमरे में पंहुचा , मेरी आंखे फटी रह गयी पूरा बदन तरबदार पसीने से मुँह सुख चूका था , मेने कहा तुम तो अभी ऊपर थी ,
मै ऊपर थी कब ? मै तो यही थी, दीदी गयीं होगी - फरीन ने उत्तर दिया
मैं डर चूका था अब न अंदर जाने मन था न बहार जाने का 
बस मुँह से निकला दीदी कहा है,
कहता हुआ बाहर आया , मै बहार आया ही था के दीदी आती दिखी , डर भी रहा था सोच रहा था मेरी आंखे ही तो धोखा नहीं खा रही , दीदी कहाँ थी, कही नहीं, बहार गयी थी , आजाओ और बो अंदर चली गयी कमरे में ......
  इतने में मेरे नोकिआ ११०० फोन की रिंग बजी ,
मेैने - हेैलो पापा,
उधर से बहुत सोर सराबे बाला माहौल सा महसूस किया मैने , रोने जैसी आवाजे आरही थी,
क्या हुआ पापा मैने फिर से दुहराया,
पापा-- बेटा बहुत बुरा हो गया,(घबराते हए )
क्या हुआ पापा ?
पापा - आपके बुआ की बेटी सलोनी और उसकी सहेली फरीन का एक्सीडेंट होगया और बो.......
और बो.. क्या पापा? कब हुआ ये  सब ...
आज दोपहर १२ बजे और बो  इस दुनिया से चली गयी......
ये कहते हुए उन्होंने कॉल काट दिया ,...................

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3 Comments

  1. आपकी ब्लॉग कहानियो का खजाना हैं रोचक कहानी हैं ।

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